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________________ भगवती सूत्र--श. ५ उ. २ स्निग्ध पथ्यादि वायु ७७५ मंदा वाया, महावाया वायंति; तया णं पञ्चत्थिमेण वि ईसिंपुरेवाया, जया णं पञ्चत्थिमे णं ईसिंपुरवाया तया णं पुरस्थिमेण वि ? ३ उत्तर-हंता, गोयमा ! जया णं पुरस्थिमे णं, तया णं पञ्चथिमेण वि ईसिंपुरेवाया० जया णं पञ्चस्थिमेण वि ईसिंपुरेवाया० तया णं पुरथिमेण वि ईसिंपुरवाया एवं दिसासु, विदिसासु । कठिन शब्दार्थ-ईसिपुरवाया-ईषत्पुरोवात-कुछ स्निग्धता युक्त वायु, पच्छावायापथ्यवात-वनस्पति आदि को हितकर वायु । भावार्थ-१ प्रश्न-राजगृह नगर में यावत् इस प्रकार बोले कि हे भगवन् ! क्या ईषत्पुरोवात, पथ्यवात, मन्दवात और महावात बहती हैं (चलती हैं) ? १ उत्तर-हाँ, गौतम ! उपरोक्त वायु बहती हैं। २ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या पूर्व दिशा में ईषत्पुरोवात, पथ्यवात, मन्दवात और महावात बहती हैं ? ____२ उत्तर-हाँ, गौतम ! उपरोक्त वायु पूर्व दिशा में बहती है । इसी तरह पश्चिम में, दक्षिण में, उत्तर में, ईशानकोण में, अग्निकोण में, नैऋत्यकोण में और वायव्यकोण में उपरोक्त वायु बहती हैं। ३ प्रश्न-हे भगवन ! जब पूर्व में ईषत्पुरोवात, पथ्यवात, मन्दवात और महावात बहती हैं, तब पश्चिम में भी ईषत्पुरोवात आदि वायु बहती हैं, और जब पश्चिम में ईषत्पुरोवात आदि वायु बहती हैं, तब क्या पूर्व में भी वे वायु बहती हैं ? ३ उत्तर-हे गौतम ! जब पूर्व में ईषत्पुरोवात आदि वायु बहती हैं, तब वे सब पश्चिम में भी बहती है और जब पश्चिम में ईषत्पुरोवात आदि वायु बहती हैं, तब पूर्व में भी वे सब वायु बहती हैं। इसी प्रकार सब विशाओं में और विदिशाओं में भी कहना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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