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भगवती सूत्र - श. ५ उ. २ स्निग्ध पथ्यादि वायु
विवेचन - पहले उद्देशक में दिशाओं को लेकर दिवस आदि का विभाग बतलाया गया है । अब इस दूसरे उद्देशक में भी दिशाओं को लेकर वायु सम्बन्धी वर्णन किया जाता है । इसमें सबसे पहले वायु के भेद बतलाये गये हैं । स्वल्प ओस आदि की स्निग्धता युक्त वायु को 'ईषत्पुरोवात' कहते हैं । वनस्पति आदि के लिये लाभदायक और हितकर वायु को 'पथ्यवात' कहते हैं। धीरे धीरे चलने वाली वायु को 'मन्दवात' कहते हैं । उद्दण्ड, प्रचण्ड और तूफानी वायु को 'महावात' कहते हैं ।
चार दिशा और चार विदिशा, इन आठों के सम्बन्ध में आठ सूत्र कहे गये हैं। आगे दो सूत्र दिशाओं के पारस्परिक सम्बन्ध को लेकर कहे गये हैं । और दो सूत्र विदिशाओं के पारस्परिक सम्बन्ध को लेकर कहे गये हैं ।
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४ प्रश्न - अत्थि णं भंते ! दीविचया ईसिंपुरेवाया ?
४ उत्तर - हंता, अस्थि ।
५ प्रश्न - अस्थि णं भंते ! सामुद्दया ईसिंपुरेवाया ? ५ उत्तर - हंता, अस्थि ।
६ प्रश्न - जया णं भंते ! दीविचया ईसिंपुरेवाया तया णं सामुद्दया विईसिंपुरेवाया जया णं सामुद्दया ईसिंपुरेवाया तया दीविया विईसिंपुरेवाया ? ६ उत्तर - गो इणट्ठे समट्ठे ।
७ प्रश्न - से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ, जया णं दीविच्चया ईसिं पुरेवाया, णो णं तया सामुद्दया ईसिंपुरेवाया, जया णं सामुदया ईसिं पुरेवाया, णो णं तया दीविचया ईसिंपुरेवाया ? ७ उत्तर - गोयमा ! तेसि णं वायाणं अण्णमण्णविवञ्चासेणं
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