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भगवती सूत्र – श. ५ उ. १ लवण समुद्र में सूर्योदय
प्पिणी पडिवजह, तया णं उत्तरड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जह, जया णं उत्तरड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम- पचत्थिमेणं वत्थि ओसप्पिणीः णेवत्थि उस्सप्पिणी समणाउसो ! ?
१६ उत्तर - हंता, गोयमा ! जाव- समणाउसो ! |
कठिन शब्दार्थ - - अभिलावो -- अभिलाप, नेवत्थि -- नहीं होना ।
भावार्थ - - १५ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या लवणसमुद्र में सूर्य ईशानकोण में उदय होकर अग्निकोण में जाते हैं ? इत्यादि सारा प्रश्न पूछना चाहिए । १५ उत्तर - हे गौतम ! जिस प्रकार जम्बूद्वीप में सूर्यों के सम्बन्ध में वक्तव्यता कही गई है, वह सम्पूर्ण वक्तव्यता लवण समुद्र के सम्बन्ध में भी कहनी चाहिए । इतनी विशेषता है कि इस वक्तव्यता में पाठ का उच्चारण इस प्रकार करना चाहिए - "हे भगवन् ! जब लवण समुद्र के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है, इत्यादि सारा कथन उसी प्रकार कहना चाहिए, यावत् तब लवणसमुद्र में पूर्व पश्चिम में रात्रि होती है । इस अभिलाप द्वारा सारा वर्णन जान लेना चाहिए । १६ प्रश्न - हे भगवन् ! जब लवणसमुद्र के दक्षिणार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी होती है, तब उत्तरार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी होती है ? और जब उत्तरार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी होती है, तब लवणसमुद्र के पूर्व पश्चिम में अवसर्पिणी नहीं होती, उत्सर्पिणी नहीं होती, परन्तु वहाँ अवस्थित काल होता है ? १६ उत्तर - हाँ, गौतम ! यह इसी तरह होता है, यावत् अवस्थित काल होता है ।
विवेचन - पहले प्रकरण में जम्बूद्वीप में सूर्य का वर्णन किया गया है। अब लवणसमुद्रादि में सूर्य का वर्णन किया जाता है ।
जम्बूद्वीप एक लाख योजन का लम्बा चौड़ा है । जम्बूद्वीप में दो सूर्य और दो चंद्र हैं। जम्बूद्वीप को चारों ओर से घेरे हुए लवणसमुद्र है। इस समुद्र का पानी खारा है, इसलिए
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