________________
भगवती सूत्र-श. ३ उ. ३ जीव की एजनादि क्रिया
वोसट्टमाणे समभरघडत्ताए चिट्ठइ ? हंता चिट्ठइ । अहे णं केइ पुरिसे तंसि हरयंसि एगं महं णावं सयासवं, सयच्छिदं ओगाहेजा, से पूर्ण मंडियपुत्ता ! सा णावा तेहिं आसवदारहिं आपूरेमाणी आपूरेमाणी, पुण्णा, पुण्णप्पमाणा, वोलट्टमाणा, वोसट्टमाणा, समभरघडताए चिट्ठइ ? हंता चिट्ठइ । अहे णं केइ पुरिसे तीसे णावाए सव्वओ समंता आसवदाराइं पिहेइ, पिहित्ता णावा-उसिंचणएणं उदयं उसिंचिजा, से णूणं मंडियपुत्ता ! सा णावा तंसि उदयंसि उसिंचिजंसि समाणंसि खिप्पामेव उड्ढे उद्दाइ ? हंता, उद्दाइ।
कठिन शब्दार्थ-तणहत्थयं-घास के पुले को, जायतेयंसि-अग्नि में, मसमसाविज्जइजल जाता है, तत्तंसि अयकवलंसि--लोहे की तप्त कड़ाई में, उदयबि, पक्खिवेज्जा-पानी की बूंद डाले, खिप्पामेव-शीघ्र, विद्धंसमागच्छइ-नष्ट हो जाती है, हरए-पानी का द्रह, पुणे–पूर्ण, वोलट्टमाणे-लबालब भरा हो, वोसट्टमाणे-पानी छलक रहा हो, सयासव सयच्छि-सैकड़ों छिद्र वाली, आसवदाराई-पानी आने के मार्ग को, पिहेइ-ढक दे, बन्द करदे, उस्सिचणएणं-उलीचने के साधन से, उड्ढे उद्दाइ-ऊपर आवे ।
भावार्थ-जैसे कोई पुरुष, सूखे घास के पूले को अग्नि में डाले, तो क्या हे मण्डितपुत्र ! वह सूखे घास का पूला अग्नि में डालते ही जल जाता है ? हां, भगवन् ! वह जल जाता है।
जैसे कोई पुरुष, पानी की बूंद को तपे हुए लोह कडाह पर डाले, तो क्या हे मण्डितपुत्र ! तपे हुए लोह कडाह पर डाली हुई वह जलबिन्दू तुरन्त नष्ट हो जाती है ? हाँ, भगवन् ! वह तुरन्त नष्ट हो जाती है।
कोई एक सरोवर-जो पानी से परिपूर्ण हो, पूर्ण भरा हुआ हो, लबालब भरा हुआ हो, बढ़ते हुए पानी के कारण उससे पानी छलक रहा हो, पानी से
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org