________________
भगवती सूत्र - श. ३ उ. ५ अनगार की विविध प्रकार की वैक्रिय शक्ति ६८९
कठिन शब्दार्थ - असिचम्मपायं - तलवार और ढाल अथवा म्यान, किच्चगएणंकिसी कार्यवश ।
भावार्थ- - ४ प्रश्न - हे भगवन् ! जैसे कोई पुरुष, हाथ में तलवार और ढाल अथवा म्यान लेकर जाता है, क्या उसी प्रकार कोई भावितात्मा अनगार भी उस पुरुष की तरह किसी कार्य के लिए स्वयं आकाश में ऊंचे उड़ सकता है ?
४ उत्तर - हाँ, गौतम ! उड़ सकता है ।
५ प्रश्न - हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार तलवार और ढाल लिये हुए पुरुष के समान कितने रूप बना सकता है ?
५ उत्तर - हे गौतम ! युवति युवा के दृष्टान्त से यावत् सम्पूर्ण एक जम्बूद्वीप को ठसाठस भर सकता है, किन्तु कभी इतने वेक्रिय रूप बनाये नहीं, बनाता नहीं और बनावेगा भी नहीं ।
६ प्रश्न - से जहा णामए केइ पुरिसे एगओपडागं काउं गच्छेजा वामेव अणगारे वि भावियप्पा एगओपडागाहत्थकिञ्चगएणं अप्पा - णं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा ?
६ उत्तर - हंता, गोयमा ! उप्पएज्जा ।
७ प्रश्न - अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवइयाई पभू एगओपडागाहत्थकिच्चगयाई रुवाई विउव्वित्तए ?
७ उत्तर - एवं चैव जाव - विउव्विंसु वा, विउब्वंति वा, विउव्विस्संति वा । एवं दुहओपडागं पि ।
भावार्थ - ६ प्रश्न - हे भगवन् ! जैसे कोई पुरुष, हाथ में एक पताका लेकर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org