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भगवती सूत्र-श. ३ उ. ७ लोकपाल यम देव
४ उत्तर-हे गौतम ! सौधर्मावतंसक नाम के महाविमान से दक्षिण में सौधर्मकल्प में असंख्य हजार योजन आगे जाने पर, देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराजा का वरशिष्ट नाम का महान् विमान है। उसकी लम्बाई चौड़ाई साढ़े बारह लाख योजन है, इत्यादि सारा वर्णन सोम महाराजा के सन्ध्याप्रभ महाविमान की तरह कहना चाहिये, यावत् अभिषेक तक । राजधानी और प्रासादों की पंक्तियों के विषय में भी उसी तरह कहना चाहिये । देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज की आज्ञा में यावत् ये देव रहते हैं:-यमकायिक, यमदेव-कायिक, प्रेतकायिक, प्रेतदेव-कायिक, असुरकुमार, असुरकुमारियाँ, कन्दर्प, नरकपाल, अभियोग और इसी प्रकार के वे सब देव जो यम महाराज की भक्ति, पक्ष और अधीनता रखते हैं, ये सब यम महाराज की आज्ञा में यावत् रहते हैं।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं जाइं इमाइं समुप्पजंति, तं जहा-डिंबा इ वा, डमरा इ वा, कलहा इ वा, बोला इ वा, खारा इ वा, महाजुद्धा इ वा, महासंगामा इ वा, महासत्थणिवडणा इ वा, एवं महापुरिसणिवडणा इ वा, महारुहिरणिवडणा इ वा, दुब्भूआ इ वा, कुलरोगा इवा, गामरोगा इ वा, मंडल. रोगा इ वा, नगररोगा इ वा, सीसवेयणा इ वा, अच्छिवेयणा इ वा, कण्णवैयणा इ वा, णहवेयणा इ वा, दंतवेयणा इ वा, इंदग्गहा इ वा, खंदग्गहा इ वा, कुमारग्गहा इ वा, जक्खग्गहा इ वा, भूयग्गहा इवा, एगाहिया इवा, बेयाहिया इवा, तेयाहिया इवा, चाउत्थहिया इ वा, उव्वेयगा इवा, कासाइ वा, सासा इवा, सोसाइवा, जरा
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