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भगवती सूत्र-श. ३ उ. ७ लोकपाल यम देव
को अपत्य रूप से अभिमत अम्ब, अम्बरीष आदि देव होते हैं । वे 'परमाधार्मिक' देव कहलाते है। ये तीसरी नारकी तक नैरयिक जीवों को नाना प्रकार से कष्ट देते हैं। परमाधार्मिक देवों के पन्द्रह भेद हैं। जिनके नाम ऊपर बतलाये गये हैं । उनका अर्थ इस प्रकार है
(१) अम्ब-असुर जाति के जो देव नारकी जीवों को ऊपर आकाश में लेजाकर एक दम छोड़ देते हैं।
(२) अम्बरीष-जो छुरी आदि के द्वारा नारकी जीवों के छोटे-छोटे टुकड़े करके भाड़ में पकने योग्य बनाते हैं।
(३) श्याम-जो रस्सी या लात घूसे आदि से नारकी जीवों को पीटते हैं और भयङ्कर स्थानों में पटक देते हैं तथा जो काले रंग के होते हैं, वे 'श्याम' कहलाते हैं ।
(४) शबल-जो नारकी जीवों के शरीर की आँतें, नसें और कलेजे आदि को बाहर खींच लेते हैं तथा शबल अर्थात् चितकबरे रंग वाले होते हैं, उन्हें 'शबल' कहते हैं।
(५) रुद्र (रौद्र)-जो भाला, बी आदि शस्त्रों में नारकी जीवों को पिरो देते हैं और जो रौद्र (भयङ्कर) होते हैं, उन्हें 'रुद्र' कहते हैं।
(६) उपरुद्र (उपरौद्र)-जो नैरयिकों के अंगोपांगों को फाड़ डालते हैं और जो महारौद्र (अत्यन्त भयङ्कर) होते हैं, उन्हें 'उपरुद्र' कहते है।
(७) काल-जो नैरयिकों को कड़ाही में पकाते हैं और काले रंग के होते हैं, उन्हें
'काल' कहते हैं।
... (८) महाकाल-जो उनके चिकने माँस के टुकड़े टुकड़े करते हैं, एवं उन्हें खिलाते हैं और बहुत काले होते हैं उन्हें 'महाकाल' कहते हैं ।
(९) असिपत्र-जो वैक्रिय शक्ति द्वारा असि अर्थात् तलवार के आकार वाले पत्तों से युक्त वन की विक्रिया करके उसमें बैठे हुए नारकी जीवों के ऊपर वे तलवार सरीखे पत्ते गिरा कर तिल सरीखे छोटे-छोटे टुकड़े कर डालते हैं, उन्हें 'असिपत्र' कहते हैं ।
- (१०) धनुष-जो धनुष के द्वारा अर्द्ध चन्द्रादि बाणों को फैक कर नारकी जीवों के कान आदि को छेद देते हैं, भेद देते हैं और भी दूसरी प्रकार की पीड़ा पहुंचाते हैं, उन्हें 'धनुष' कहते है।
(११) कुम्भ-जो नारकी जीवों को कुम्भियों में पकाते हैं, उन्हें 'कुम्भ' कहते हैं । - (१२) बालू-जो वैक्रिय के द्वारा बनाई हुई कदम्ब पुष्प के आकारवाली अथवा वज्र के आकारवाली बालू रेत में नारकी जीवों को चने की तरह भूनत हैं, उन्हें 'बाल'
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