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भगवती सूत्र-श ३ उ ७ लोकपाल यम देव
कृत क्लेश, महासत्यनिवडणा-महाशस्त्र निपतन, महापुरिसनिवडणा--महापुरुष मरण, महारुहिरनिवडणा-महारुधिर निपतन, दुब्भूआ---दुर्भूत--दुष्टजन, अच्छिवेयणा--आँखों की पीड़ा, इन्दग्गहा-इन्द्र ग्रह, एगाहिआ-एकान्तर ज्वर, उग्वेयगा--उद्वेग, कासाखांसी, हरिसा-बवासिर-- मस्सा।।
भावार्थ - इस जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण में जो ये कार्य होते हैंडिम्ब (विघ्न) डमर (उपद्रव) कलह, बोल, खार (पारस्परिक मत्सरता) महायुद्ध, महा-संग्राम, महाशस्त्र-निपतन, इसी तरह महापुरुषों की मृत्यु, महारुधिर का निपतन, दुर्भूत, (दुष्टजन) कुलरोग, मण्डलरोग, नगररोग, सिर दर्द, नेत्र वेदना, कर्ण वेदना, नख वेदना, दन्त वेदना, इन्द्र ग्रह, स्कन्द ग्रह, कुमार ग्रह, यक्ष ग्रह, एकान्तर ज्वर, द्विअन्तर ज्वर, त्रिअन्तरज्वर, चतुरन्तर, (चोथियाबुखार) उद्वेग, खांसी, श्वास (दम) बलनाशक ज्वर, दाह ज्वर, कच्छ-कोह (शरीर के कक्षादि भागों का सड़ जाना) अजीर्ण, पाण्डरोग, हरसरोग, भगन्दर, हृदयशूल, मस्तकशूल, योनिशूल, पार्श्वशूल, कुक्षिशूल, ग्राममारी, नगरमारी, खेट, कर्बट, द्रोणमुख, मडम्ब, पट्टग, आश्रम संबाध और सन्निवेश इन सब की मारी (मृगी रोग), प्राणक्षय, जनक्षय, कुलक्षय, व्यसनभूत, अनार्य (पापरूप), और इसी प्रकार के दूसरे सब कार्य देवेन्द्र, देवराज शक के लोकपाल यम महाराजा से अथवा यमकायिक देवों से अज्ञात आदि नहीं है । देवेन्द्र देवराज शक के लोकपाल यम महाराजा के देव अपत्य रूप से अभिमत हैं-अम्ब, अम्बरिष, श्याम, शबल, रुद्र, उपरुद्र, काल, महाकाल, असिपत्र, धनुष, कुम्भ, बालू, वैतरणी, खरस्वर और महाघोष-ये पन्द्रह हैं।
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराजा की स्थिति तीन भाग सहित एक पल्योपम की है और उसके अपत्य रूप से अभिमत देवों की स्थिति एक पल्योपम की है । यम महाराजा ऐसी महाऋद्धि वाला और महा प्रभाव वाला है।
विवेचन-विघ्न, क्लेश, उपद्रव, युद्ध, महायुद्ध, संग्राम, महासंग्राम रोग, ज्वर आदि सारे कार्य यम महाराज और यमकायिक देवों से अज्ञात आदि नहीं होते हैं । यम महाराज
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