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भगवती सूत्र-श. ३ उ. ७ लोकपाल वरुण देव
विमान आता है। इसका मारा वर्णन सोम महाराज के महा विमान की तरह जानना चाहिये । इसी तरह विमान, राजधानी यावत् प्रासादावतंसकों के विषय में भी जानना चाहिये । केवल नामों में अन्तर है।
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल वरुण महाराज की आज्ञा में यावत् ये देव रहते है-वरुणकायिक, वरुणदेव कायिक, नागकुमार, नागकुमारियां, उदधिकुमार, उदधिकुमारियां, स्तनितकुमार, स्तनितकुमारियाँ और इसी प्रकार के उसकी भक्ति और पक्ष रखनेवाले तथा अधीनस्थ देव उनकी आज्ञा में यावत् रहते हैं।
इस जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण दिशा में जो ये कार्य उत्पा, होते हैं । यथा-अतिवृष्टि, मन्दवृष्टि, सुवृष्टि, दुर्वृष्टि, उदकोभेद (पहाड़ आदि से निकलने वाला झरना) उदकोत्पील (तालाब आदि में पानी का समूह),अपवाह (पानी का थोड़ा बहना)प्रवाह (पानी का प्रवाह) ग्रामवाह ग्राम का बह जाना) यावत् सन्निवेशवाह (सन्निवेश का बह जाना) प्राण-क्षय और इसी प्रकार के दूसरे सब कार्य वरुण महाराज से अथवा वरुणकायिक देवों से अज्ञात आदि नहीं है।
देवेन्द्र देवराज शक के लोकपाल वरुण महाराज के ये देव अपत्य रूप से अभिमत हैं-कर्कोटक, कर्दमक, अञ्जन, शंखपालक, पुण्ड्र, पलाश, मोद, जय, दधिमुख, अयंपुल और कातरिक ।
___ देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल वरुण महाराज की स्थिति देशोन दो पल्योपम की है और उसके अपत्य रूप से अभिमत देवों की स्थिति एक पल्योपम की है । वरुण महाराज ऐसा महाऋद्धिवाला और महा प्रभाववाला है।
- विवेचन-वरुण के प्रकरण में वर्षा सम्बन्धी वर्णन किया गया है । वेगपूर्वक बरसती हुई वर्षा को 'अतिवर्षा' और धीरे बरसती हुई वर्षा को 'मन्द-वर्षा' कहा गया है । जिस वर्षा से धान्य आदि अच्छी तरह पक जाय उसे 'सुवृष्टि' और जिससे धान्य आदि न पक सके उसे 'दुर्वृष्टि' कहा है । पर्वत की तलहटी आदि स्थानों से पानी का निकलना 'उदकोद्भेद,' तालाब आदि में एकत्रित पानी का समूह 'उदकोत्पील,' पानी का प्रबल बहाव 'प्रवाह' और मन्द बहाव 'अपवाह' कहलाता है । तथा पानी के द्वारा होने वाले प्राणक्षय
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