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भगवती सूत्र - श. ३ उ. १० इन्द्र की परिषद्
उत्तर - हे गौतम ! दो प्रकार का कहा गया है । यथा - सुख स्पर्श परिणाम और दुःख स्पर्श परिणाम ।
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दूसरी प्रतियों में तो इन्द्रियों के विषय सम्बन्धी सूत्र के अतिरिक्त उच्चावचसूत्र और सुरभि सूत्र, ये दो सूत्र और कहे गये हैं । यथा-
प्रश्न- हे भगवन् ! क्या उच्चावच शब्द परिणामों के द्वारा परिणाम को प्राप्त होते हुए पुद्गल 'परिणमते हैं - ऐसा कहना चाहिए ?
उत्तर - हाँ, गौतम ! 'परिणमते हैं' - ऐसा कहना चाहिए ।
प्रश्न - हे भगवन् ! क्या शुभ शब्दों के पुद्गल अशुभ शब्दपने परिणमते हैं ? उत्तर - हाँ, गौतम ! परिणमते हैं । इत्यादि ।
॥ तीसरे शतक का नवमा उद्देशक समाप्त ॥
शतक ३ उद्देशक १०.
इन्द्र की परिषद्
१ प्रश्न - रायगिहे जाव एवं वयासी - चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स, असुररण्णो कह परिसाओ पण्णत्ताओ ?
१ उत्तर - गोयमा ! तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहासमिया, चंडा, जाया, एवं जहाणुपुव्वीए जाव - अच्चुओ कप्पो । सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति ।
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कठिन शब्दार्थ -परिसाओ - परिषदाएँ - सभाएँ, तभ—–तीन, जहाणुपुग्विएयथानुपूर्वी - क्रमपूर्वक |
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