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भगवती सूत्र-श. ३ उ. ५ सम्यग्दृष्टि अनगार की विकुर्वणा
होता हैं। इस कारण से वह तथाभाव से जानता और देखता है-ऐसा कहा जाता है। दूसरा आलापक भी इसी तरह कहना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि उसमें वाणारसी नगरी की विकुर्वणा और राजगृह नगर में रहे रूपों का देखना जानना कहना चाहिये।
११ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या अमायी सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार अपनी वीर्य लब्धि से, वैक्रिय-लब्धि से और अवधिज्ञान-लब्धि से, राजगह नगर और वाणारसी नगरी के बीच में एक बडे जनपद वर्ग की विकुर्वणा करके उस (राजगृह नगर और वाणारसी नगरी के बीच में) एक बड़े जनपद वर्ग को जानता और देखता है ? ..
११ उत्तर-हां, गौतम ! वह उस जनपद वर्ग को जानता और देखता है।
१२ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वह उस जनपद वर्ग को तथाभाव से जानता और देखता है, अथवा अन्यथाभाव से जानता और देखता है ?
१२ उत्तर-हे गौतम ! वह उस जनपद वर्ग को तथाभाव से जानता और देखता है, किन्तु अन्यथाभाव से नहीं जानता और नहीं देखता।
१३ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
१३ उत्तर-हे गौतम ! उस साधु के मन में इस प्रकार का विचार होता है कि न तो यह राजगृह नगर है और न यह वाणारसी नगरी है, तथा न यह . इन दोनों के बीच में एक बड़ा जनपद वर्ग है, किन्तु यह मेरी वीर्यलब्धि है, वैक्रिय-लब्धि है, यह मुझे मिली हुई, प्राप्त हुई, और सम्मुख आई हुई ऋद्धि, धति, यश, बल, वीर्य और पुरुषकार पराक्रम है । उसका दर्शन अविपरीत होता है। इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि वह साधु तयाभाव से जानता और देखता है, परन्तु अन्यथाभाव से नहीं जानता और नहीं देखता है।
१४ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना एक बडे ग्राम, नगर यावत् सन्निवेश के रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ?
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