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भगवती सूत्र - श. ३ उ ६ सम्यग्दृष्टि अनगार की विकुर्वणा
अपरियाइत्ता पभू एगं महं गामरूवं वा, णयररूवं वा, जाव - सणवेरूवं वा विउव्वित्तए ?
१४ उत्तर - णो इणट्टे समट्ठे एवं बिईओ वि आलावगो, वरं - बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू ।
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१५ प्रश्न - अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवइयाई पभू गामरुवाई विउव्वित्तए ?
१५ उत्तर - गोयमा ! से जहा णामए जुवई जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेजा, तं चैव जाव - विउब्विंसु वा विउब्वंति वा, विउब्विस्संति वा, एवं जाव-सण्णिवेसरूवं वा ।
भावार्थ - ८ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या वाणारसी नगरी में रहा हुआ अमायी सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार, अपनी वीर्य लब्धि से वैक्रिय लब्धि से और अवधिज्ञान लब्धि से राजगृह नगर की विकुर्वणा करके वाणारसी के रूपों को जानता और देखता है ?
८ उत्तर - हाँ, वह उन रूपों को जानता और देखता है ।
९ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या वह उन रूपों को तथाभाव से जानता और देखता है ? अथवा अन्यथाभाव से जानता और देखता है ?
९ उत्तर - हे गौतम! वह उन रूपों को तथाभाव से जानता और देखता हैं, किन्तु अन्यथाभाव से नहीं जानता और नहीं देखता ।
१० प्रश्न - हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
१० उत्तर - हे गौतम ! उस साधु के मन में इस प्रकार का विचार होता है कि वाणारसी नगरी में रहा हुआ में राजगृह नगर को विकुर्वणा करके वाणारसी के रूपों को जानता और देखता हूं । उनका दर्शन अविपरीत (सम्यक् )
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