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भगवती सूत्र-श. ३ उ. ५ अनगार की विविध प्रकार की वैक्रिय शक्ति
गमन करता है, क्या उसी तरह से भावितात्मा अनगार भी हाथ में पताका लिए हुए पुरुष के समान रूप बना कर स्वयं ऊपर आकाश में उड़ सकता है ?
६ उत्तर-हाँ, गौतम ! उड़ सकता है।
७ प्रश्न-हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार, हाथ में पताका लेकर गमन करने वाले पुरुष के समान कितने रूप बना सकता है ?
७ उत्तर-हे गौतम ! पहले कहा वैसे ही जानना चाहिए अर्थात् वह ऐसे रूपों से सम्पूर्ण एक जम्बूद्वीप को ठसाठस भर देता है, यावत् परन्तु कभी इतने रूप बनाये नहीं, बनाता नहीं और बनायेगा भी नहीं । इसी तरह दोनों तरफ पताका लिये हुए पुरुष के रूप के सम्बन्ध में कहना चाहिए।
८ प्रश्न-से जहा णामए केइ पुरिसे एगओजण्णोवइयं काउं गच्छेजा, एवामेव अणगारे णं भावियप्पा एगओजण्णोवइयकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएजा ?
८ उत्तर-हंता, उप्पएजा। - ९ प्रश्न-अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवइयाइं पभू एगओ. जण्णोवइयकिचगयाइं रूवाइं विउवित्तए ? ____९ उत्तर-तं चेव जाव विउव्विसुवा, विउव्वंति वा, विउन्विसंति वा । एवं दुहओजण्णोवइयं पि ।
कठिन शब्दार्थ-जण्णोवइयं-जनेऊ ।
भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! जैसे कोई पुरुष एक तरफ जनेऊ (यज्ञो. पवीत)पहन कर गमन करता है। क्या उसी तरह भावितात्मा अनगार भी एक तरफ जनेऊ (यज्ञोपवीत) पहने हुए पुरुष की तरह रूप बना कर ऊपर
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