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भगवती सूत्र-श. ३ उ. ५ अनगार के अश्वादि रूप
गाहा-इत्थी असी पडागा जण्णोवइए य होइ बोधव्वे,
पल्हथिय पलियंके अभिओग विकुव्वणा माई ।
॥ तइयसए पंचमो उद्देसो सम्मत्तो॥ कठिन शब्दार्थ-मायी-प्रमादी, आभियोगिक-सेवक, अमायो-अप्रमत्त । भावार्थ-१७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या मायी अनगार, विकुर्वणा करता , है, या अमायी अनगार, विकुर्बणा करता है ?
१७ उत्तर-हे गौतम ! मायी अनगार, विकुर्वणा करता है, किन्तु अमायी अनगार, विकुर्वणा नहीं करता। .
१८ प्रश्न- हे भगवन् ! पूर्वोक्त प्रकार से विकुर्वणा करने के पश्चात् उस सम्बन्धी आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना यदि वह विकुर्वणा करने वाला मायी अनगार, काल करे तो कहाँ उत्पन्न होता है ?
१८ उत्तर-हे गौतम ! वह अनगार, किसी एक प्रकार के आभियोगिक देवलोकों में देवरूप से उत्पन्न होता है।
१९ प्रश्न-हे भगवन् ! पूर्वोक्त प्रकार की विकुर्वणा सम्बन्धी आलोचना और प्रतिक्रमण करके जो अमायो साधु, काल करे तो कहाँ उत्पन्न होता है ?
१९ उत्तर-हे गौतम ! वह अनगार किसी एक प्रकार के अनाभियोगिक देवलोकों में देवरूप से उत्पन्न होता है।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
गाथा का अर्थ इस प्रकार है-स्त्री, तलवार, पताका, जनेऊ, पलाठी और पर्यङ्कासन, इन सब रूपों के अभियोग और विकुर्वणा सम्बन्धी वर्णन इस उद्देशक में है । तथा इस प्रकार मायी अनगार करता है । यह बात भी बतलाई गई है।
विवेचन-इन प्रश्नोत्तरों में भी विकुर्वणा सम्बन्धी वर्णन किया गया है । यह 'मायी विकुम्वइ' पाठ है और किन्ही प्रतियों में 'मायी अभिमुंजइ' पाठ है। 'अभिमुंजइ' का अर्थ है 'अभियोग' करना अर्थात् विद्या आदि के बल से घोड़ा, हाथी, आदि के रूपों में प्रवेश
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