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भगवती सूत्र-श. ३ उ. ५ अनगार की विविध प्रकार की वैक्रिय शक्ति
वह प्रणीत (गरिष्ट) आहार आदि नहीं करता, किन्तु रूखा, सूखा आहार करता है और वह उसके उच्चार, प्रश्रवण आदि रूप में परिणत होता है।
जिस अनगार ने पहले मायी (प्रमत्त) होने के कारण वैक्रिय रूप बनाया था अथवा प्रणीत भोजन किया था, तत्पश्चात् वह उस विषयक पश्चाताप करने से अमायी (अप्रमत्त) हो जाता है और फिर वह आलोचना और प्रतिक्रमण करने के पश्चात् काल करता है, तो वह आराधक होता है। .
॥ इति तीसरे शतक का चौथा उद्देशक समाप्त ॥
शतक ३ उद्देशक ५
अनगार की विविध प्रकार की वैक्रिय शक्ति
१ प्रश्न-अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पमू एगं महं इत्थीरूवं वा, जाव-संदमाणियरूवं वा विउवित्तए ? , १ उत्तर-णो इणटे समटे ।
२ प्रश्न-अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगं महं इत्थीरूवं वा, जाव-संदमाणियरूवं वा विउवित्तए ?
२ उत्तर-हंता, पभू।
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