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भगवती सूत्र-श. ३ उ. ४ मेघ का विविध रूपों में परिणमन
१४ उत्तर-हे गौतम ! वह आत्मऋद्धि से गति नहीं करता, किन्तु परऋद्धि से गति करता है। इसी तरह आत्मकर्म (आत्म क्रिया) से और आत्मप्रयोग से गति नहीं करता, परन्तु परकर्म और पर-प्रयोग से गति करता है। वह उच्छित-पताका (ऊंची ध्वजा-हवा से उड़ती हुई ध्वजा) और पतित-पताका (हवा से नहीं उड़ती हुई ध्वजा-गिरी हुई ध्वजा) दोनों के आकार रूप से गति करता है।
१५ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वह बलाहक स्त्री है ?
१५ उत्तर-हे गौतम ! वह बलाहक स्त्री नहीं है, परन्तु बलाहक (मेघ) है। जिस प्रकार स्त्री के सम्बन्ध में कहा, उसी तरह पुरुष, घोड़ा, हाथी के विषय में भी कहना चाहिये । अर्थात् वह बलाहक पुरुष, घोड़ा और हाथी नहीं है, किन्तु बलाहक (मेघ) है।
१६ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वह बलाहक, एक बड़ा यान (शकट-गाडी) का रूप बनकर अनेक योजन तक जा सकता है ?
१६ उत्तर-हे गौतम ! जैसे स्त्रीरूप के सम्बन्ध में कहा उसी तरह यान के सम्बन्ध में भी कहना चाहिये। परन्तु इतनी विशेषता है कि वह यान (गाडी) के एक तरफ चक्र (पहिया) रख कर भी चल सकता है और दोनों तरफ चक्र रखकर भी चल सकता है। इसी तरह युग्य (रिक्शा गाडी) गिल्ली (अम्बारी) थिल्लि (घोडे का पलाण) शिविका (पालखी) सयन्दमानिका (म्याना) के रूपों के सम्बन्ध में भी जानना चाहिये।
विवेचन-रूप बदलने की क्रिया का प्रकरण चल रहा है । इसलिए आकाश में मेघों के जो अनेक रूप दिखाई देते हैं, उनके विषय में कहा जाता है । मेघ अजीव होने से उसमें विकुर्वणा शक्ति नहीं है । इसलिये उसके लिये 'विउवित्तए' शब्द न देकर 'परिणामेत्तए' शब्द दिया है । क्यों कि स्वभाव रूप परिणाम तो मेघों में भी होता है। मेघ अचेतन है । इसलिये वह आत्म ऋद्धि, आत्मकर्म (आत्म क्रिया) और आत्म प्रयोग से गति नहीं करता, परन्तु वायु अथवा देवादि द्वारा प्रेरित होकर गति करता है । इसलिये कहा . गया है कि मेघ परऋद्धि, परकर्म (पर क्रिया) और पर प्रयोग से गति. करता है ।
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