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भगवती सूत्र-श. ३ उ. ४ मेघ का विविध रूपों में परिणमन
११ उत्तर-हे गौतम ! वह वायुकाय पताका नहीं हैं, किन्तु वायुकाय
विवेचन-वैक्रिय शक्ति का प्रकरण चल रहा है, इसलिए उसीसे सम्बन्धित बात यहाँ कही जाती है।
वायुकाय का स्वरूप 'पताका' के आकार है, इसलिए वैक्रिय अवस्था में भी वायु पताका के आकार ही रहती है । वह ऊँची पताका के आकार अर्थात् हवा से उड़ती हुई ध्वजा के आकार और पतित-पताका हवा से न उड़ती हुई ध्वजा, दोनों के आकार होकर गति करती है । वह एक दिशा में एक ध्वजा के आकार होकर गति करती है, किंतु दो दिशाओं में दो ध्वजा के आकार होकर गति नहीं करती। वह अपनी लब्धि द्वारा, अपनी क्रिया द्वारा और अपने प्रयोग द्वारा गति करती है, किन्तु परऋद्धि, परक्रिया और पर-प्रयोग द्वारा गति नहीं करती। वह शकट पालखी, पलाण, अम्बारी, स्यन्दमानिका (म्याना) के आकार रूप नहीं बना सकती। किन्तु वैक्रिय रूप बनाती हुई वायुकाय, पताका के आकार ही रूप बनाती है ।
मेघ का विविध रूपों में परिणमन
१२ प्रश्न-पभू णं भंते ! बलाहए एगं महं इत्थिरूवं वा, जावसंदमाणियरूवं वा परिणामेत्तए ?
१२ उत्तर-हंता, पभू।
१३ प्रश्न-पभू णं भंते ! बलाहए एगं महं इत्थिरूवं परिणामेत्ता अणेगाइं जोयणाई गमित्तए ?
१३ उत्तर-हंता, पभू। १४ प्रश्न-से भंते ! किं आयड्ढीए गच्छह, परिड्ढीए गच्छइ ?
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