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भगवती सूत्र-श. ३.उ. ३ लवण समुद्र का प्रवाह
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लवण समुद्र का प्रवाह
१८ प्रश्न-"भंते !" त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-कम्हा णं भंते ! लवणसमुद्दे चाउद्दस-ट्टमु-ट्टि-पुण्णमासिणीसु अइरेगं वड्ढइ वा ? हायइ वा ?
१८ उत्तर-जहा जीवाभिगमे लवणसमुद्दवत्तव्वया णेयव्वा । जाव-लोयट्टिई, लोयाणुभावे।
सेवं भंते ! सेवं भत्ते ! ति जाव विहरइ ।
॥ तइओ किरिआ उद्देसो सम्मत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ-कम्हाणं-किसलिए, अइरेगं-अधिक, हायइ-कम होता है, लोयट्टिई -लोक स्थिति, लोयाणुभावे-लोकानुभाव ।
भावार्थ-१८ प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा कहकर भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार किया। वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार कहा- हे भगवन् ! लवण समुद्र चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन कसे अधिक बढ़ता है और कैसे अधिक घटता है ?
१८ उत्तर-हे गौतम ! जैसा जीवाभिगम सूत्र में लवण समुद्र के संबंध में कहा है, वैसा यहां पर भी जान लेना चाहिए, यावत् 'लोकस्थिति, लोकानभाव' इस शब्द तक कहना चाहिए। ___ सेवं भंते ! सेवं भंते !! हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् !
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