SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६८ भगवती सूत्र-श. ३.उ. ३ लवण समुद्र का प्रवाह + + + + + + + + + + + + + + लवण समुद्र का प्रवाह १८ प्रश्न-"भंते !" त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-कम्हा णं भंते ! लवणसमुद्दे चाउद्दस-ट्टमु-ट्टि-पुण्णमासिणीसु अइरेगं वड्ढइ वा ? हायइ वा ? १८ उत्तर-जहा जीवाभिगमे लवणसमुद्दवत्तव्वया णेयव्वा । जाव-लोयट्टिई, लोयाणुभावे। सेवं भंते ! सेवं भत्ते ! ति जाव विहरइ । ॥ तइओ किरिआ उद्देसो सम्मत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ-कम्हाणं-किसलिए, अइरेगं-अधिक, हायइ-कम होता है, लोयट्टिई -लोक स्थिति, लोयाणुभावे-लोकानुभाव । भावार्थ-१८ प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा कहकर भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार किया। वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार कहा- हे भगवन् ! लवण समुद्र चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन कसे अधिक बढ़ता है और कैसे अधिक घटता है ? १८ उत्तर-हे गौतम ! जैसा जीवाभिगम सूत्र में लवण समुद्र के संबंध में कहा है, वैसा यहां पर भी जान लेना चाहिए, यावत् 'लोकस्थिति, लोकानभाव' इस शब्द तक कहना चाहिए। ___ सेवं भंते ! सेवं भंते !! हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy