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________________ भगवती सूत्र - श. ३ उ. ३ लवण समुद्र का प्रवाह यह इसी प्रकार है, ऐसा कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं । विवेचन - प्रमत्तता और अप्रमत्तता को लेकर 'सर्वाद्धा' का कथन किया गया है । अतः अब सर्वाद्धाभावी अन्य पदार्थों का निरूपण करने के लिये लवण समुद्र की जल वृद्धि और हानि विषयक प्रश्न किया गया है। इस प्रश्न के उत्तर के लिये जीवाभिगम सूत्र की भलामण दी गई है । जीवाभिगम सूत्र में कही हुई लवण समुद्र सम्बन्धी वक्तव्यता इस प्रकार है प्रश्न- -हे भगवन् ! चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन लवण समुद्र का जल अधिक क्यों बढ़ता है और अधिक क्यों घटता है ? ६६९ उत्तर - लवण समुद्र के बीच में चारों दिशाओं चार महापाताल कलश हैं । प्रत्येक का परिमाण एक लाख योजन है । उनके नीचे के विभाग में वायु है । बीच के भाग में जल और वायु है और ऊपर के भाग में केवल जल है । इन चार महापाताल कलशों के अतिरिक्त और भी छोटे-छोटे पाताल कलश हैं । उनकी संख्या ७८८४ है । उनका परिमाण एक-एक हजार योजन का है । उनमें भी पूर्वोक्त रीति से वायु, जलवायु और जल है । उनके वायु विक्षोभ से लवण समुद्र के जल में पूर्वोक्त तिथियों में वृद्धि और हानि होती है । लवण समुद्र की शिखा का विष्कंभ (चौड़ाई) दस हजार योजन है और उसकी ऊंचाई सोलह हजार योजन है । उसके ऊपर आधा योजन जल वृद्धि और जल हानि होती है । इत्यादि । प्रश्न - हे भगवन् ! लवण समुद्र जम्बूद्वीप को अपने पानी के प्रवाह से नहीं डूबाता है । इसका क्या कारण है ? उत्तर - अरिहन्त आदि महापुरुषों के प्रभाव से वह नहीं डूबाता है तथा लोक की स्थिति ही ऐसी है । लोक का प्रभाव ही ऐसा है । ॥ इति तृतीय शतक का तृतीय उद्देशक समाप्त ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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