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भगवती सूत्र - ३ उ. २ चमरेन्द्र की चिन्ता और वीर वन्दन
होती है । विशेषाधिक दो भाग का मतलब है-योजन के विशेषाधिक दो विभाग अर्थात् त्रिभाग सहित तीन गाऊ । वह वज्र ऊंचा भी विशेषाधिक दो भाग जाता है । यहाँ विशेषाधिक दो भाग का मतलब यह है कि तिच्र्च्छा क्षेत्र में कहे हुए दो भाग से कुछ विशेषाधिक समझना चाहिये । वज्र, एक समय में ऊंना एक योजन जाता है, क्योंकि ऊंचा जाने में वज्र की शीघ्रतम गति होती है ।
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शंका -- मूलसूत्र में तो सामान्य रूप से विशेषाधिकता कही गई है, तो यहाँ नियमितता वाली विशेषाधिकता किस प्रकार कही गई है ?
समाधान - एक समय में चमरेन्द्र जितना नीचे जाता है, उतना ही नीचा जाने में शकेन्द्र को दो समय लगते हैं और वज्र को तीन समय लगते हैं । इस कथन से शक्रेन्द्र की अधोगति की अपेक्षा वज्र की अधोगति त्रिभाग न्यून हैं । इसलिए वज्र की अधोगति त्रिभाग न्यून योजन कही गई है । शकेन्द्र का अधोगमन का समय और वज्र का ऊर्ध्वगमन का समय, ये दोनों तुल्य बतलाये गये हैं । इस कथन से जाना जाता है कि- एक समय में शकेन्द्र जितना नीचे जाता है, उतना क्षेत्र, वज्र एक समय में ऊपर जाता है । शक्रेन्द्र एक समय में नीचे एक योजन जाता है और वज्र एक समय में ऊपर एक योजन जाता है, इसलिए वज्र की ऊर्ध्वगति एक योजन कही गई है । ऊर्ध्वगति और अधोगति के बीच में तिर्यग् गति है, इसलिए उसका परिमाण बीच का होना चाहिए. इसलिए उसका परिमाण विभाग सहित तीन गाऊ बतलाया गया है ।
यह गतिविषयक क्षेत्र की अल्पवहुत्त्र कही गई है । इसके बाद गति के काल विपयक अल्पबहुत्व कही गई है । जो भावार्थ में बतला दी गई है ।
चमरेन्द्र की चिन्ता और वीर वन्दन
तरणं से चमरे असुरिंदे असुरराया वज्जभयविप्पमुक्के, सक्केणं देविंदेणं देवरण्णा महया अवमाणेणं अवमाणिए समाणे चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसि
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