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भगवती सूत्र - श. ३ उ. २ चमरेन्द्र का उत्पात
सक्कं देविंदं देवरायं सयमेव अच्चासाइत्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेह, संपेहित्ता सयपिज्जाओ अन्भुट्ठेह, अन्भुट्टेत्ता देवदूसं परिहेह, परिहित्ता उववायसभाए पुरत्थिमिल्लेणं णिग्गच्छछ, णिगच्छित्ता जेणेव सभा सुहम्मा, जेणेव चोप्पाले पहरणकोसे, तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता फलिहरयणं परामुसइ, परामुसित्ता एगे अबीए; फलिहरयणमायाय महया अमरिसं वहमाणे चमरवंचाए सयहाणीए मज्झमज्झेणं णिग्गच्छछ, णिगच्छित्ता जेणेव तिमिच्छ्कूडे उप्पायपव्वए तेणेव उवागच्छछ, उवामच्छित्ता जाव - वेउब्वियसमुग्धारणं समोहणइ, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई जाव - उत्तरविउब्वियरूवं विवर, ताए उकिट्टाए जाव - जेणेव पुढविसिलापट्टए, जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छछ, उवागच्छित्ता ममं तिक्खुतो आयाहिणं पयाहिणं करेs, जाव - मंसित्ता एवं वयासी- इच्छामि णं भंते ! तुभं णीसाए सक्कं देविंद देवरायं सयमेव अबासाइत्तएं
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कठिन शब्दार्थ - अण्णे--अन्य दूसरा, अभ्यासात्तए- नष्ट भ्रष्ट करने के लिए, उस उणिए- - उष्ण हुआ उष्णता को प्राप्त हुआ- रुष्ठ हुआ, ओहि पउंजइअवधिज्ञान का प्रयोग किया, परिहेइ-पहना, चोप्पाले पहरणकोसे - चतुष्पाल - चतुष्खण्ड नवम का शस्त्र रखने का भण्डार, फलिहरयणं परिधरन नाम का शस्त्र, परामुसद्द - लिया, अमरिसं वहमाणे – रोष को धारण करता हुआ ।
भावार्थ - सामानिक देवों के उत्तर को सुनकर, अवधारण करके असुरेन्द्र असुरराज चमर, आशुरक्त हुआ अर्थात् क्रुद्ध हुआ, रुष्ट हुआ, अर्थात् रोष में भरा, कुपित हुआ, चण्ड बना अर्थात् भयङ्कर आकृतिवाला बना और क्रोध के
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