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भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ दोनों इन्द्रों का शिष्टाचार
कठिन शब्दार्थ-पभू-समर्थ, अंतियं-निकट-पास, पाउभवित्तए-प्रकट होने के लिए, हंता-हाँ, आढायमाणे-आदर करता हुआ, सपक्खिं--सपक्ष-चारों तरफ, सपडिदिसिं-सप्रतिदिश-सब तरफ, समभिलोइत्तए-देखने के लिए, आलावगा-आलापक ।
भावार्थ-२३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र, देवेन्द्र देवराज ईशान के पास आने में समर्थ है ?
२३ उत्तर-हाँ, गौतम ! शकेन्द्र, ईशानेन्द्र के पास आने में समर्थ है।
२४ प्रश्न-हे भगवन् ! जब शकेन्द्र ईशानेन्द्र के पास आता है, तो क्या ईशानेन्द्र का आदर करता हुआ आता है, या अनादर करता हुआ आता है ?
२४ उत्तर-हे गौतम ! जब शकेन्द्र, ईशानेन्द्र के पास आता है, तब वह उसका आदर करता हुआ आता है, किन्तु अनादर करता हुआ नहीं आता है।
२५ प्रश्न-हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान, देवेन्द्र देवराज शक्र के पास आने में समर्थ है ?
२५ उत्तर-हाँ, गौतम ! ईशानेन्द्र, शकेन्द्र के पास आने में समर्थ है।
२६ प्रश्न-हे भगवन् ! जब ईशानेन्द्र, शक्रेन्द्र के पास आता है, तो क्या वह शकेन्द्र का आदर करता हुआ आता है, या अनादर करता हुआ आता है ?
२६ उत्तर-हे गौतम ! जब ईशानेन्द्र, शक्रेन्द्र के पास आता है, तब आदर करता हुआ भी आ सकता है और अनादर करता हुआ भी आ सकता है।
२७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र, देवेन्द्र देवराज ईशान के सपक्ष (चारों तरफ) सप्रतिदिश (सब तरफ) देखने में समर्थ है ?
२७ उत्तर-हे गौतम! जिस तरह से पास आने के सम्बन्ध में दो आलापक कहे हैं, उसी तरह से देखने के सम्बन्ध में भी दो आलापक कहने चाहिए।
२८ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र, देवेन्द्र देवराज ईशान के साथ आलाप संलाप-बातचीत करने में समर्थ है ?
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