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भगवती सूत्र-श. ३ उ. २ आश्चर्य कारक
ummmmmmm ते असुरकुमारा देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धि दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणा विहरित्तए; एवं खलु गोयमा ! असुरकुमारा देवा सोहम्म कप्पं गया य, गमिस्संति य।।
कठिन शब्दार्थ-अच्छराहि सद्धि-अप्सराओं के साथ, पडिनियत्तंति-पीछे फिरकर ।
भावार्थ-१५ प्रश्न-हे भगवन् ! ऊपर (सौधर्म देवलोक में) गये हुए वे असुरकुमार देव, क्या वहाँ रही हुई अप्सराओं के साथ दिव्य और भोगने योग्य भोग भोगने में समर्थ है ?अर्थात् वहाँ भोग, भोग सकते हैं ?
१५ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् वे वहाँ उन अप्सराओं के साथ दिव्य और भोगने योग्य भोग नहीं भोग सकते हैं, किन्तु वे वहाँ से वापिस लौटते हैं और अपने स्थान पर आते हैं। यदि कदाचित् वे अप्सराएँ उनका आदर करें और उन्हें स्वामी रूप से स्वीकार करें तो वे असुरकुमार देव, उन वैमानिक अप्सराओं के साथ दिव्य और भोगने योग्य भोग, भोग सकते हैं परन्तु यदि वे अप्सराएँ उनका आदर नहीं करें और उन्हें स्वामी रूप से स्वीकार नहीं करें, तो वे असुरकुमार देव, उन वैमानिक अप्सराओं के साथ दिव्य और भोगने योग्य भोग नहीं भोग सकते हैं। हे गौलम ! इस कारण से असुरकुमार देव सौधर्म कल्प तक गये हैं, जाते हैं, और जावेंगे।
आश्चर्य कारक
१६ प्रश्न केवइयकालस्स णं भंते ! असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति, जाव-सोहम्मं कप्पं गया य, गमिस्संति य ?
१६ उत्तर-गोयमा ! अणंताहिं उस्सप्पिणीहि, अणंताहिं अवसप्पिणीहि समइक्कंताहिं, अस्थि णं एस भावे लोयच्छेरयभूए
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