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भगवती सूत्र - श ३ उ. २ आश्चर्य कारक
समुप्पज्जइ, जं णं असुरकुमारा देवा उड्ढं उपयंति, जाव - सोहम्मो
कप्पो ।
१७ प्रश्न - किं णिस्साए णं भंते ! असुरकुमारा देवा उड्ढ उपयंति, जाव - सोहम्मो कप्पो ?
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१७ उत्तर - गोयमा ! से जहा नामए इह सवरा हवा, बच्चरा इवा, टंकणा इवा, भुत्तुआ इ वा, पण्हया ( पल्हया) इ वा, पुलिंदा इ वा एगं महं रण्णं वा, गड्डे वा, खड्डं वा, दुग्गं वा, दरिं वा, विसमं वा, पव्वयं वा णीसाए सुमहलमवि आसवलं वा, हत्थिबलं वा, जोहबलं वा, धणुबलं वा, आगलेति, एवामेव असुरकुमारा वि देवा णण्णत्थ अरिहंते वा अरिहंतचेइयाणि वा अणगारे वा भावि
पण णिस्साए उडूढं उप्पयंति, जाव - सोहम्मो कप्पो ।
कठिन शब्दार्थ - उप्पयंति-ऊँचे उछलते हैं, गमिस्संति- जावेंगे, समइक्कंताहि- बीत जाने के बाद, लोयच्छेरयभूए - लोक में आश्चर्यकारक, णिस्साए - निश्रा - आश्रय लेकर, रणं - अटवी - जंगल, दुग्गं - जलदुर्ग, दरि-स्थल दुर्ग-पर्वत कन्दरा, सुमहल्लवि - अति विशाल, आसबलं - अश्व-बल, जोहबलं - योद्धाओं का बल, आगलेंति - अकुलाते हैं, थकाते हैं, णण्णत्थनान्यत्र - अन्यत्र कहीं नहीं - निश्चित रूप से 1
भावार्थ - १६ प्रश्न - हे भगवन् ! कितने समय में अर्थात् कितना समय बीतने पर असुरकुमार देव उत्पतित होते हैं अर्थात् सौधर्म कल्प तक ऊपर जाते हैं ? गये हैं और जावेंगे ?
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१६ उत्तर - हे गौतम ! अनन्त उत्सर्पिणी और अनन्त अवसर्पिणी व्यतीत होने के पश्चात् लोक में आश्चर्यजनक यह समाचार सुना जाता है कि असुरकुमार देव ऊपर जाते हैं यावत् सौधर्म कल्प तक जाते हैं ।
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