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६१२ भगवती सूत्र-श. ३ उ. २ असुरकुमारों के सौधर्मकल्प में जाने का कारण!- .
असुरकुमारों के सौधर्मकल्प में जाने का कारण
१२ प्रश्न-किंपत्तियं णं भंते ! असुरकुमारा देवा सोहम्म कप्पं गया य, गमिस्संति य ? ... १२ उत्तर-गोयमा ! तेसि णं देवाणं भवपञ्चइयवेराणुबंधे, ते णं देवा विउव्वेमाणा, परियारेमाणा, वा आयरक्खे देवे वित्तासेंति, अहालहुसगाई रयणाइं गहाय आयाए एगंतमंतं अवक्कमंति।
१३ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं अहालहुसगाई रयणाइं?
१३ उत्तर-हंता, अस्थि । १४ प्रश्न-से कहमियाणि पकरेंति ? १४ उत्तर-तओ से पच्छा कायं पव्वहंति ।
कठिन शब्दार्थ-भवपच्चइयवेराणुबंधे-भवप्रत्यय वैरानुबन्ध से (जातिं गत वैर से) आयरक्खेदेवे-आत्म रक्षक देव, वित्तासेंति-त्रास देते हैं, अहालहुसगाई-छोटे छोटे, एंगंतमंतं-एकान्त में, कहमियाणि पकरेंति-क्या करते हैं, कायं पव्यहंति-शरीर पर व्यथा भोगते हैं।
भावार्थ-१२ प्रश्न-हे भगवन् ! असुरकुमार देव, ऊपर सौधर्म देवलोक तक गये हैं, जाते हैं और जायेंगे, इसका क्या कारण है ?
१२ उत्तर-हे गौतम ! असुरकुमार देवों का उन वैमानिक देवों के साथ भवप्रत्ययिक वैर (जन्म से ही वैरानुबन्ध) है, इसलिए वैक्रिय रूप बनाते हुए तथा दूसरों की देवियों के साथ भोग भोगते हुए वे असुरकुमार देव, उन आत्मरक्षक देवों को त्रास पहुंचाते हैं तथा यथोचित छोटे-छोटे रत्नों को लेकर (चुरा
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