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६१० भगवती सूत्र - श. ३ उ. २ असुरकुमारों के नन्दीश्वर गमन का कारण
गइविस पण्णत्ते ?
८ उत्तर - गोयमा ! जाव - असंखेज्जादीव-समुद्दा, दिस्सरवरं पुण दीवं गया य, गमिस्संति य ।
भावार्थ- ७ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या असुरकुमार देव, तिरछी गति करने में समर्थ हैं ?
७ उत्तर - हाँ, गौतम ! असुरकुमार देव, तिरछी गति करने में समर्थ हैं। ८ प्रश्न - हे भगवन् ! असुरकुमार देव, अपने स्थान से कितनी दूर तक तिरछी गति करने में समर्थ हैं ?
८ उत्तर - हे गौतम! असुरकुमार देव, अपने स्थान से यावत् असंख्य द्वीप समुद्रों तक तिरछी गति करने में समर्थ हैं, किंतु वे नन्दीश्वर द्वीप तक गये हैं, जाते हैं, और जाएँगे ।
असुरकुमारों के नन्दीश्वर गमन का कारण
९ प्रश्न - किंपत्तियं णं भंते! असुरकुमारा देवा णंदिस्सरवरं दीव गया य, गमिस्संति य ?
९ उत्तर - गोयमा ! जे इमे अरिहंता भगवंता एएसि णं जम्मणमहेसुवा, णिक्खमणमहेसुवा, णाणुप्पायमहिमासु वा, परिणिव्वाणमहिमासु वा, एवं खलु असुरकुमारा देवा णंदीसरवरं दीवं गया य, गमिस्संति य ।
कठिन शब्दार्थ - नंदीसरवरं - नन्दीश्वर द्वीप को, जम्मणमहेसु – जन्म - महोत्सव पर, निक्खमणमहेसु - निष्क्रमण – संसार त्याग कर प्रव्रज्या लेते समय होने वाले महोत्सव पर, णाणुप्पायमहिमासु - केवलज्ञान उत्पन्न होने पर महिमा करने, परिनिव्वाणमहिमासुमोक्ष गमन पर महिमा करने ।
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