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भगवती सूत्र-श. ३ उ. २ असुरकुमारों का गमन सामर्थ्य
विवेचन-पहले उद्देशक में देवों की विकुर्वणा शक्ति के विषय में कहा गया है। दूसरे उद्देशक में भी असुरकुमार आदि देवों की गमनशक्ति के विषय में कहा गया है ।
असुरकुमार आदि भवनवासी देव कहाँ रहते हैं ? इसके लिये कहा गया है;'उरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहिता, हेट्ठा चेगंजोयणसहस्सं वज्जेत्ता, मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्थ णं असुरकुमाराणं देवाणं चउट्टि भवणावाससयसहस्सा भवंतीति अक्खायं ।"
___ अर्थात्-रत्नप्रभा का पृथ्वीपिण्ड एक लाख अस्सी हजार योजन है। उसमें से ऊपर एक हजार योजन अवगाहन करके और नीचे एक हजार योजन छोड़ कर बीच में एक लाख अठहत्तर हजार योजन के भाग में असुरकुमार देवों के चौसठ लाख भवनावास हैं ।
असुरकुमारों का गमन सामर्थ्य
४ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! असुरकुमारा देवाणं अहेगइ विसए ?
४ उत्तर-हंता, अस्थि ।
५ प्रश्न केवइयं च णं पभू ते असुरकुमाराणं देवाणं अहेगइ विसर पण्णत्ते ?
५ उत्तर-गोयमा ! जाव-अहे सत्तमाए पुढवीए, तच्चं पुण पुढविं गया य, गमिस्संति य।
६ प्रश्न-किंपत्तियं णं भंते ! असुरकुमारा देवा तच्चं पुढविं गया य, गमिस्संति य ?
६ उत्तर-गोयमा ! पुव्ववेरियस्स वा वेदणउदीरणयाए, पुव
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