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भगवती सूत्र-श. ३ उ. २ असुरकुमार देवों के स्थान
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जोयणसयसहस्सवाहल्लाए, एवं असुरकुमारदेववत्तव्वया, जावदिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरति ।
कठिन शब्दार्थ-अहे-नीचे, इमीसे-इस ।
भावार्थ-१ प्रश्न-उस काल उस समय में राजगृह नाम का नगर था यावत् परिषद् पर्युपासना करने लगी। उस काल उस समय में चौसठ हजार सामानिक देवों से परिवृत (घिरे हुए) और चमर नामक सिंहासन पर बैठे हुए चमरेन्द्र ने भगवान् को देख कर यावत् नाटय-विधि बतलाकर जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में वापिस चला गया ।
हे भगवन् ! ऐसा कह कर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार पूछा कि-हे भगवन् ! क्या असुरकुमार देव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे रहते हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् असुरकुमार देव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे नहीं रहते हैं, यावत् सातवीं पृथ्वी के नीचे भी नहीं रहते हैं। इसी तरह सौधर्म देवलोक के नीचे यावत् दूसरे सभी देवलोकों के नीचे भी असुरकुमार देव नहीं रहते हैं। .. २ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या ईषत्प्रागभारा पृथ्वी के नीचे असुरकुमार देव रहते हैं ?
२ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं अर्थात् ईषत्प्रागभारा पृथ्वी के नीचे भी असुरकुमार देव नहीं रहते हैं।
३ प्रश्न-हे भगवन् ! तब ऐसा कौनसा प्रसिद्ध स्थान है जहाँ असुरकुमार देव निवास करते हैं ?
३ उत्तर-हे गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी की मोटाई (जाडाई) एक लाख अस्सी हजार योजन की है। इसके बीच में असुरकुमार देव रहते हैं। (यहाँ पर असुरकुमार सम्बन्धी सारी वक्तव्यता कहनी चाहिए । यावत् वे दिव्य भोग भोगते हुए विचरते हैं ।)
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