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भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ दोनों इन्द्रों का शिष्टाचार
२१ उत्तर-हंता, गोयमा ! सकस्स तं चेव सव्वं णेयव्वं । २२ प्रश्न-से केणटेणं ?
२२ उत्तर-गोयमा ! से जहा णामए करयले सिया देसे उच्चे, देसे उण्णए, देसे णीए, देसे णिण्णे; से तेणटेणं गोयमा ! सकस्स देविंदस्स देवरण्णो जाव-ईसि णिण्णयरा चेव ।
___ कठिन शब्दार्थ-ईसि-ईषत्-थोड़ा सा, “उच्चयरा-ऊँचे, उण्णयतरा-उन्नत, णीययतरा-नीचे, णिण्णयरा-निम्न, करयले-करतल-हथेली, देसे-भाग-हिस्सा।
भावार्थ-२१ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र के विमानों से देवेन्द्र देवराज ईशान के विमान कुछ (थोडे से) ऊंचे हैं, कुछ उन्नत हैं ? क्या देवेन्द्र देवराज ईशान के विमानों से देवेन्द्र देवराज शक्र के विमान कुछ नीचे हैं ? कुछ निम्न हैं ?
२१ उत्तर-हाँ, गौतम ! यह इसी तरह से है। यहाँ ऊपर का सूत्रपाठ उत्तर रूप से समझना चाहिए। अर्थात् शक्रेन्द्र के विमानों से ईशानेन्द्र के विमान कुछ थोडे से ऊंचे हैं, कुछ थोडे से उन्नत हैं और ईशानेन्द्र के विमानों से शवेन्द्र के विमान कुछ थोडे नीचे हैं, कुछ थोडे निम्न है।
२२ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
२२ उत्तर-हे गौतम ! जैसे--हथेली का एक भाग कुछ ऊंचा और उन्नत होता है और एक भाग कुछ नीचा और निम्न होता है । इसी तरह शकेन्द्र और ईशानेन्द्र के विमानों के विषय में जानना चाहिए । इसी कारण से पूर्वोक्त प्रकार से कहा जाता है।
दोनों इन्द्रों का शिष्टाचार २३ प्रश्न-पभू णं भंते ! सक्के देविंदे देवराया ईसाणस्स
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