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भगवती सूत्र -
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. ३२ प्रश्न - से कहमियाणिं पकरेंति ?
३२ उत्तर - गोयमा ! ताहे चेव णं ते सक्की-साणा देविंदा देवरायाणो सणकुमारं देविंदं देवरायं मणसी- करेंति, तरणं से सकुमारे देविंदे देवराया तेहिं सक्की-साणेहिं देविंदेहिं देवराई हिं मणसी-व - कए समाणे खिप्पामेव सक्कीसाणाणं देविंदाणं देवराईणं अंतिअं पाउब्भवइ, जं से वयइ तस्स आणा उववाय-वयण- णिसे चिट्ठन्ति ।
कठिन शब्दार्थ - आलावं संलावं - आलाप - संलाप - बातचीत, किच्चाई करणियाइं - कार्य होता है - प्रयोजन होता है, कहमियाणि पकरेंति - किस प्रकार करते हैं, अण्णमण्णस्स - एक दूसरे को, पच्चणुभवमाणा - प्रत्यनुभव - अपना काम करते हुए, विवादा- विवाद - झगड़ा, मणसीकरेंति-मन से स्मरण करते हैं, खिप्पामेव - शीघ्र ही, वयइ - कहते हैं ।
भावार्थ - २९ प्रश्न - हे देवराज ईशान के बीच में कार्य) होता है ?
श. ३ उ. १ सनत्कुमारेन्द्र की मध्यस्थता
२९ उत्तर
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भगवन् ! उन देवेन्द्र देवराज शक और देवेन्द्र परस्पर कोई कृत्य ( प्रयोजन) करणीय ( विधेय
र - हाँ, गौतम ! होता है ।
३० प्रश्न - हे भगवन् ! जब उहें कृत्य और करणीय होते हैं, तब वे किस प्रकार व्यवहार करते हैं ?
वह
३० उत्तर - हे गौतम ! जब देवेन्द्र देवराज शक्र को कार्य होता है, तब देवेन्द्र देवराज ईशान के पास आता है और जब देवेन्द्र देवराज ईशान को कार्य होता है, तब वह देवेन्द्र देवराज शक्र के पास आता है । उनके परस्पर सम्बोधित करने का तरीका यह है-ईशानेन्द्र पुकारता है कि- “हे दक्षिण लोकार्द्धपति देवेन्द्र देवराज शक्र ! " शक्रेन्द्र पुकारता है कि- " हे उत्तर लोकार्द्धपति देवेन्द्र देवराज ईशान ! ( यहाँ 'इति' शब्द कार्य को सूचित करने के लिए है
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