________________
भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ तामली द्वारा अस्वीकार
.
५८५
. तामली द्वारा अस्वीकार
तएणं से तामली बालतवस्सी तेहिं बलिचंचारायहाणिवत्थव्वेहि बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं, देवीहि य एवं वुत्ते समाणे एयमटुं णो आढाइ, णो परियाणेइ, तुसिणीए संचिट्ठइ, तएणं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य, देवीओ य तामलिं मोरियपुत्तं दोच्चं पि तच्चंपि तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेंति, जाव अम्हं च णं देवाणुप्पिया ! बलिचंचारायहाणी अणिंदा, जावठिइपकप्पं पकरेह, जाव-दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्ठइ, तए णं से बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया कहवे असुरकुमारा देवा य, देवीओ य तामलिणा बालतवस्सिणा अणाढाइजमाणा, अपरियाणिजमाणा, जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया।
कठिन शब्दार्थ-तुसिणीए संचिट्ठइ-चुपचाप रहा, वुत्ते समाणे-कहने पर, अणाढाइज्जमाणा-अनादर किये हुए, पाउन्भूया-प्रादुर्भूत-प्रकट हुए।
- भावार्थ-जब बलिचंचा राजधानी में रहने वाले बहुत से असुरकुमार देव और देवियों ने उस तामली बाल-तपस्वी को पूर्वोक्त प्रकार से कहा, तो उसने उनकी बात का आदर नहीं किया, स्वीकार नहीं किया, परन्तु मौन रहा।
तब वे बलिचंचा राजधानी में रहने वाले बहुत से असुरकुमार देव और देवियों ने उस तामली बाल-तपस्वी की फिर तीन बार प्रदक्षिणा करके दूसरी बार, तीसरी बार इसी प्रकार कहा कि आप हमारे स्वामी बनने का संकल्प
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org