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भगवती सूत्र - श. ३ उ. १ ईशान कल्प में उत्पत्ति
करें, इत्यादि । किन्तु उस तामली बाल-तपस्वी ने उनकी बात का कुछ भी उत्तर नहीं दिया और मौन रहा । इसके पश्चात् जब तामली बालतपस्वी के द्वारा उस बलिचंचा राजधानी में रहनेवाले बहुत से असुरकुमार देव और देवियों का अनादर हुआ और उनकी बात मान्य नहीं हुई, तब वे देव और देवियाँ जिस दिशा से आये थे, उसी दिशा में वापिस चले गये ।
ईशान कल्प में उत्पत्ति
तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाणे कप्पे अणिंदे, अपुरोहिए या वि होत्या, तर णं से तामली बालतवस्ती बहुपडिपुण्णाई सद्धिं वाससहस्साइं परियागं पाउणित्ता, दोमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सवीसं भत्तसयं अणसणाए छेदित्ता, कालमासे कालं किचा ईसाणे कप्पे, ईसाणवडिंसए विमाणे, उववायसभाए देवसयणिजंसि, देवदूसंतरिए अंगुलस्स असंखेज्जभागमेत्तीए ओगाहणाए ईसाणे देविंदविरहकालसमयंसि ईसाणे देविंदत्ताए उववण्णे । तए णं से ईसाणे देविंदे, देवराया अहुणोववण्णे पंचविहाए पज्जत्तीए पजत्तीभावं गच्छ्छ, तं जहा - आहारपज्जत्तीए, जावभासा -मणपज्जत्तीए ।
कठिन शब्दार्थ - देविदविरहकालसमयंसि - देवेन्द्र के विरहकाल में, अहुणोववले - अधुनोपपन्न - तत्काल उत्पन्न हुआ ।
भावार्थ - उस काल उस समय में ईशान देवलोक इन्द्र और पुरोहित
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