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एक अविस्मरणीय व्यक्तित्व
भवरलाल नाहटा
बाबू छोटेलालजी कलकत्ते के जैन समाज में एक स्थित हो जाते। हमें जब कभी एशियाटिक सोसायटी से विशिष्ट कार्यकर्ता थे। नवीन और पुराने विचारों का पाण्डुलिपि या फोटो लेने की प्रावश्यकता होती तो पापको सम्मिलन होने के कारण वृद्ध और युवक सभी व्यक्तियों कहते ही स्वयं माकर या पत्र द्वारा वह कार्य तुरन्त से प्रापका मेल-जोल था। समन्वय और संगठन प्रेमी होने करवा देते थे। के साथ साथ विचार और दूरदशित्व के कारण सब
जैन समाज में एकता और संगठन के पक्षपाती होने लोगों में आपका पादर था। मैं लगभग पचीस तीस वर्षों
के नाते वे श्वेतामार, दिगम्बर प्राविभेद भावों से ऊपर से उनके सम्पर्क में माता रहा हैं। वे न केवल जैनधर्म
उठे रहते और सबसे अपनत्व का व्यवहार रखते थे। पौर समाज के कार्यों में ही रुचि रखते थे, सार्वजनिक
जैन सभा के प्राप समापनि भी रहे और सभी जैन कार्यों में भी वे बरावर सेवाएं देते रहते थे। सभा सोसा
सम्प्रदामों को एक प्लेटफार्म पर देखकर आप सुखका इटियों में जाते प्रात, एशियाटिक सोसाइटी के सदस्य
अनुभव करते थे। श्री पूरणचन्द्रजी नाहर, बहादुरसिंहमी बहुत पहले से थे। कलकत्ता के हैसियन और गनी बेग्ज
सिंधी, मोतीचन्दजी नरवत, रायकुमारसिंहनी मुकीम, ऐसोसिएशन के माप वर्षों तक अध्यक्षादि पदों पर रहे
लक्ष्मीचन्दजी सेठ, गणेशकान्तजी नाहटा, रूपचन्दनी बढेर एव नाना प्रकार के झमेले पड़ जाने पर प्रापको पंच मुकर्रर किया जाता और उन मामलों को बड़ी सूझ-बूझ
विजयसिंहजी नाहर प्रादि श्वेताम्बर समाज के सभी से निपटा देते थे।
नेतामों-व्यक्तियों के साथ मापका पात्मीय सम्बन्ध था।
बहुत वर्ष पूर्व जब इन्स्टीटयूट हाल में महावीर जयन्ती जैनधर्म के प्रचार की आपके हृदय मे बड़ी तमन्ना
का सम्मिलित समारोह मनाया गया तब बहादुरसिंह जी थी। पुरातत्व का उन्हें जबर्दस्त शौक था । दक्षिण भारत
सिंधी प्रादि के साथ प्रापका भा पूर्ण सहयोग था। वीर मे बिखरे हुए जैन अवशेषों का मापने बारीकी से अध्ययन
शासन जयन्ती के अवसर पर प्रापने जैन साहित्योबार के किया था। ऊन, खण्डगिरि-उदयगिरि प्रादि विस्मृत
लिए प्रयत्न करके एक बड़ा फरकायम किया जिसमें सवं स्थानों को प्रकाश में लाकर तीर्थरूप देने में आपका प्रबल
प्रथम एकमुश्त बड़ी रकम देकर मापने 'चैरिटी फोमहोम' हाय था। जैनधर्म के सम्बन्ध में कोई भी विद्वान् कुछ
की कहावत चरितार्थ की थी। जानना चाहता तो सर्वप्रथम वह आपके सम्पर्क मे पाता। बहुत से बगाली और विदेशी विद्वान् अापके यहाँ सतत जैन पुरातत्व का उन्हें इतना शौक था कि कहीं कोई प्राया करते थे। पुरातत्व-विभाग मे भापका बहुत प्रभाव पुरातत्वावशेषों की बात सुनते तो उसकी विशेष शोय था और सेण्ट्रल और बगाल के अधिकारी वर्ग से मापका करने के लिए प्रयत्नशील हो जाते। पासाम के पुरातत्व घनिष्ठ सम्बन्ध था। उनके यहाँ जाने पर अक्सर किसी सम्बन्धी बात चलने पर मैंने तत्रस्थ गवालपाड़ा जिले के न किसी विद्वान् से साक्षात्कार हो ही जाता था। जिज्ञासु सूर्य पहाड़ की जैन मूर्तियों की सूचना दी तो उनके दर्शन विद्वान् को आवश्यक जानकारी देने के लिए वे उसे उप- के लिए प्रति उत्सुक हो गये । कई बार उन्होंने मुझे वहाँ युक्त व्यक्ति से मिला देते एवं अपेक्षित साहित्य प्रस्तुत का फोटो लाने के लिए कहा। मैंने दो तीन बार फोटो कर दिया करते थे। कभी किसी विषय में आवश्यकता करवाये भी, पर वह स्थान जंगल, पहाड़ों के बीच था होने पर टेलीफोन द्वारा या स्वयं ही गद्दी में माकर उप- एवं गुफा में अन्धकार के कारण पोश लाइट के प्रभाव में