Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ममेयचन्द्रिका टीका श०३० उ.११.१ जीवानां कर्मबन्धकारणनिरूपणम् ५५ 'मायमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'चत्तारि समोसरणा पनत्ता' वत्वारिचतुष्प्रकारकाणि समवसरणानि प्रज्ञप्तानि-कथितानि-इति । 'तं जहा' तया'किरियावाई क्रियावादिनः-क्रियाचारित्रपरिपालनात्मककार्यरूपा, साच कारमन्तरेण अनुपपद्यमाना कर्तारमाक्षिपन्ती आत्मसमवायिनीति बदन्ति एवं शीला या ये ते क्रियावादिनः । अथवा क्रियैव प्रधानं न ज्ञानम् , नहि गुडमाधुर्यज्ञानधान अनुभवति रसनया गुडास्वादन अतो न ज्ञान प्रधानम् अपि तु क्रियेव सर्वत्र प्रधाना एतादृश क्रियावादनशीला: क्रियावादिनः। अथवा क्रिया-जीवादिपदा. थोऽस्तीत्यादिकां वदितुं शीलं येषां ते क्रियावादिनः, ते चात्मास्तिस्व प्रतिपत्तिहैं। इस प्रकार से गौतमने यह प्रश्न समधरण के सम्बन्ध में किया है। इसके उत्तर में प्रभुश्री उनसे कहते हैं-'गोयमा ! चत्तारि समोसरणा पण्णत्ता' हे गौतम ! समवसण चार प्रकार के कहे गये हैं। 'तं जहांजैसे कि-'किरियावाई' क्रियावादि चरित्रको पालन करने रूप जो प्रकृति है उसका नाम क्रिया है। यह क्रिया कर्ता के बिना होती नहीं है । इस लिये का रूप आत्माकी सिद्धि इससे होती है । इस प्रकार आत्मा के अस्तित्व को माननेवाले जो हैं वे सब क्रियावादी हैं। अथवा-क्रिया ही प्रधान है, ज्ञान नहीं । कहीं गुड की केवल मधुरता का ज्ञानवाला व्यक्ति मात्र जिह्वा से गुडके आस्वाद को थोड़े ही जानता है, गुड के आस्वाद को जानने के लिये उसके खाने रूप क्रिया की आवश्यकता होती है। अतः क्रिया ही सर्वत्र प्रधान है ज्ञान नहीं। इस प्रकार से जो क्रिया की प्रधानता माननेवाले हैं वे क्रियावादी हैं। अथवा-जीवादि पदार्थों की अस्तित्व रूप क्रिया को मानने वाले जो हैं वे क्रियावादी हैं। સમવસરણના સંબંધમાં પ્રશ્ન કરેલ છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમ स्वामीन ४ छ -'गोयमा! चत्तारि समोसरणा पण्णता' 8 गौतम! समस२५ या२ १२ना डेल छे. 'त जहा' ते । प्रमाणे छ,--'किरिया वाई' यावाही, यात्रिने पासन ४२१॥ ३५२ प्रति छ, तेनु नाम या છે. આ ક્રિયા કર્તા શિવાય થતી નથી, કેઈ ગેળના કેવળ મધુરપણાના જ્ઞાન વાળો પુરૂષ જીભથી ગોળની મીઠાશને સ્વાદ થોડો જ જાણે છે?ગળના સ્વાદો જાણવા માટે તેને ખાવારૂપ કિયાની જરૂરત હોય છે જ તેથી ક્રિયા જ સર્વત્ર મુખ્ય છે, જ્ઞાન નહીં. આ રીતે જે ઓ કિયાને જ મુખ્ય માનનારા છે. તેઓ કિયાવાદી કહેવાય છે. અથવા જીવ વિગેરેના અસ્તિત્વવિદ્યમાનપણાની ક્રિયાને જેમાં માનનારા છે, તેઓ કિયાવાદી કહેવાય છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭