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युगवीर - निवन्धावली
पुस्तककी जान थी, कोई समालोचना नही की गई, सिर्फ उन असम्बद्ध खण्डवाक्योको देकर इतना ही लिख दिया है कि-
"बाबू साहबके उपर्युक्त वाक्योसे आप स्वयं विचार कर सकते हैं कि उनका हृदय कैसा है और वह समाजमे कैसी प्रवृत्ति चलाना ( गोत्र-जाति-पाति, नीच ऊँच, भगी, चमार, चाडालादि भेद मेटकर हर एकके साथ विवाहकी प्रवृत्ति करना) चाहते हैं" ।
इन पक्तियोमे समालोचकने, ब्रैकटके भीतर, जिस प्रवृत्ति - का उल्लेख किया है उसे ही लेखककी पुस्तकका ध्येय अथवा उद्देश्य प्रकट करते हुए वे आगे लिखते हैं :
"उपर्युक्त प्रवृत्तिको चलानेके लिये ही बाबू साहबने वसुदेवजीके विवाहकी चार घटनाओका ( जो कि बिलकुल झूठ हैं ) उल्लेख करके पुस्तकको समाप्त कर दिया था लेकिन फिर बाबू साहबको खयाल आया कि भतीजी के साथ भी शादी उचित बता दी तथा नीच, भील और व्यभिचारजात दस्सोके साथ भी जायज बता दी किन्तु वेश्या तो रह ही गई, यह सोचकर आपने फिर शिक्षाप्रद शास्त्रीय उदाहरणका दूसरा हिस्सा लिखा ओर खूब ही वेश्यागमनकी शिक्षा दी है" ।
इसी तरह के और भी कितने ही वाक्य समालोचना- पुस्तकमें जहाँ-तहां पाये जाते हैं, जिनके कुछ नमूने इस प्रकार हैं
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( १ ) " लेकिन बाबूजीको लोगोंके लिए यह दिखलाना था कि भतीजीके साथ विवाह करने मे कोई हानि नही है" । ( पृ० ४) ( २ ) “उन्हे ( बाबू साहबको ) तो जिस तिस तरह अपना मतलब बनाना है और कामवासनाकी हवस मिटानेके लिये यदि बाहरसे कोई कन्या न मिले तो अपनी ही बहिन, भतीजी आदि साथ विवाह कर लेनेकी आज्ञा दे देना है ।" ( पृ० ११ )