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प्रभुके उक्त प्रसादसे मुझे इतना आनन्द हुआ कि मानों चारों ओरसे ऐश्वर्यकी प्राप्ति हुई हो, उसी समय मेरी निद्रा खुल गई। हे स्वामी ! एकाएक प्राप्त हुए इस स्वमवृक्षके हमको कैसे फल मिलेंगे, सो कहिये ?"
परमानन्दरूप कंदको नव पल्लव ( हरा भरा ) करने के लिये मेघवृष्टि सदृश कमलमाला के वचन सुनकर स्वप्नफलका ज्ञाता राजा मृगध्वज बोला कि, "हे प्रिये ! देवताओंके दर्शन के समान ऐसे दिव्य स्वप्न के दर्शन भी बडे दुर्लभ हैं । बिरला ही भाग्यशाली जीव ऐसे स्वप्नोंका दर्शन करता है तथा तदनुसार फल पाता है । सुन्दरी ! जिस भांति पूर्व दिशाको सूर्य चन्द्रके समान दो प्रतापी पुत्र होते हैं उसी भांति तेरे भी अनुक्रमसे दो तेजस्वी पुत्र होवेंगे | पक्षी कुल में श्रेष्ठ तोते और हंसकी भांति वे दोनों ही अपने राज्यमें प्रतिष्ठित होवेंगे । हे प्रिये ! इसमें जरा भी संशय नहीं कि भगवानने प्रसादरूप जो तुझे दो पुत्र दिये हैं वे दोनों अन्तमें मुक्त होकर भगवान ही के सदृश पूजनीय होवेंगे - "
यह वचन सुनकर रानी पुलकित होगइ और रानी कमलमालाने, पृथ्वी अमूल्य रत्नको अथवा आकाश सूर्यको धारण करता है उसी भांति गर्भ धारण किया । मेरुपर्वतकी भूमि में दिव्य-रसोंसे जिस प्रकारसे कल्पवृक्षका कंद पुष्ट होता है उसी प्रकार राजाके धर्मानुसार समय व्यतीत करनेसे गर्भ वृद्धिको प्राप्त हुआ तथा