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धारण किई है उसी भांति अपनो सुन्दर प्रिय पत्नी कमलमालाको पट्टरानी पद पर स्थापित कर दी; यहीं योग्य भी था। "जिस प्रकार युद्ध में जय प्राप्ति करनेवाला केवल राजा ही होता है परन्तु पैदल आदि सेना ही उसकों सहायता करती है, उसी प्रकार पुत्र आदि इष्ट वस्तुओंको देनेवाला केवल धर्म है, परन्तु मंत्र आदि ही उसके सहायक हैं." यह विचार कर राजाने पुत्र प्राप्तिके निमित्त एक दिन स्थिर चित्त होकर गांगलि ऋषिके दिये हुए मंत्रका जप किया, जिससे सब रानियोके एक एक पुत्र उत्पन्न हुआ । सत्य है, योग्य कारणोंके मिलजाने. से अवश्य ही कार्यकी उत्पति होती है । यद्यपि राजा मृगध्वज सरल स्वभावसे चन्द्रवती रानीको बहुत मानता था, तथापि उसने पतिके साथ जो बैर किया था उस पापके कारण उसे सन्तान न हुई।
एक दिन रात्रिके समय रानी कमलमाला सुख पूर्वक सो रही थी, उस समय उसने एक दिव्य स्वम देखा और राजासे इस भांति कहने लगी कि, "हे प्राणनाथ ! आज कुछ रात्रि रहते स्वप्नावस्थामें मैंने उस आश्रमके चैत्यमें विराजमान श्रीऋषभदेव भगरानको वन्दना की, उसी समय भगवानने प्रसन्न होकर मुझसे कहीं कि, 'हे भद्रे ! तूं यह तोता ले तथा अन्य किसी समय मैं तुझे एक हंस दूंगा । यह कह कर भगवान. ने एक दिव्य वस्तुके समान अत्यन्त सुन्दर तोता मुझे दिया।