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पहले के ज़माने में बाल-विवाह होते थे। इसलिए अन्य कहीं दृष्टि बिगड़ने का सवाल ही नहीं रहता था न। जीवन कितना सुंदर और पवित्र बीतता था। उसका असर बच्चों पर कितना सुंदर पड़ता था। बच्चे भी संस्कारी और एक जैसे होते थे।
शादी करने में इतने सारे जोखिम हैं, फिर भी शौक से घोड़े पर चढ़कर शादी करते हैं, क्या यही आश्चर्य नहीं है? इसका कारण यही है कि वह इसके परिणामों को जानता ही नहीं है। थोड़ा सा दुःख लेकिन अंततः तो सुख ही है, ऐसी मान्यता के आधार पर ही सभी शादी करते हैं।
जिसे पुद्गलसार (ब्रह्मचर्य) और अध्यात्मसार (शुद्धात्मा) दोनों प्राप्त हो गए, उसका तो कल्याण ही हो गया न!
ब्रह्मचर्य आत्मा के स्वाभाविक गुणों को प्रकट होने देता है, आत्मानुभव होने देता है, आत्मा के गुणों का अनुभव होने देता है।
ब्रह्मचर्य और परफेक्ट व्यवहार दोनों साथ में होंगे तो ब्रह्मचारी जगत् का कल्याण करने में बहुत ही हितकारी हो सकेंगे।
खुद का व्यवहार कैसा है यह बताते हुए दादाश्री ने कहा है, 'हमारी एक दहाड़ से तुरंत ही महात्माओं के रोग निकल जाते हैं। इनका हाथ छू जाए तो भी सामनेवाले का काम बन जाता है। ऐसी सारी सिद्धियाँ प्रकट हो जाती है।'
परम पूज्य दादाश्री कहते हैं कि आपका निश्चय और हमारा वचनबल, अगर एक साथ ये दोनों होंगे तो पूरा 'व्यवस्थित' बदल सकता है। यहीं पर एक अपवाद सर्जित होता है।
ब्रह्मचारियों को पैंतीस साल तक विषय के सामने निरंतर सतर्क रहना पड़ता है। वर्ना मोह का वातावरण 'रिज पॉइन्ट' पर आ जाए तो उसे उड़ा देता है! तब ज्ञान बीज को भी उड़ा देता है। लेकिन अगले जन्म में यह ज्ञान सहायक होगा।
शादी करने के लिए मना करने से क्या अंतराय कर्म बंधते हैं?
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