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दृष्टि मलिन हुई कि तुरंत ही दादा के दिए हुए ज्ञान का उपाय करके तुरंत निर्मल कर देना। अंदर फोर्सफुली पाँच-दस बार बोल देना चाहिए कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ ...' तब भी वापस ठिकाने पर आ जाएगा। अथवा 'मैं दादा भगवान जैसा निर्विकारी हूँ, निर्विकारी हूँ' बोलना। इसका उपयोग करना, यह तो विज्ञान है। तुरंत फलदायी है। वर्ना गाफिल रहे तो उड़ाकर रख देगा सबकुछ!
यदि एक घंटे तक किसी भी स्त्री संबंधित विषयी ध्यान रहे तो अगले जन्म में वह अपनी माँ या वाइफ बनेगी। इसलिए सावधान हो जाओ। इसलिए विषय का विचार ध्यान रूपी नहीं हो जाना चाहिए। उन्हीं विचारों में रमणता करते रहने को कहते हैं, ध्यान रूपी। उसे उखाड़कर फेंक देना चाहिए। विचारों को देखने से ही गाँठें विलय हो जाती है, पुद्गल शुद्ध हो जाता है। स्त्री को देखते ही अंदर स्पंदन हों तो उसका तुरंत प्रतिक्रमण करना।
जागृति ज़रा सी भी मंद हुई कि विषय घुस ही जाता है। उसका आवरण आ ही जाता है!
एक बार स्लिप हए तो स्लिप नहीं होने की शक्ति कम हो जाती है। वह वापस स्लिप करवा देती है, मतलब वह ढीली पड़ जाती है। असंयम हुआ कि ढीला पड़ जाता है। संयम कम-ज्यादा हो तो हर्ज नहीं लेकिन संयम टूट जाए तो फिर हो चुका !
ब्रह्मचर्य के आग्रही होने की छूट है, लेकिन ब्रह्मचर्य के दुराग्रही नहीं बनना चाहिए। अंत में तो आत्मरूप बनना है। ब्रह्मचर्य के निमित्त से यदि कषाय हो जाएँ तो वह नहीं चलेगा। आत्मा में रहना है या ब्रह्मचर्य में?
ब्रह्मचर्य व्यवहार के अधीन है। निश्चय तो ब्रह्मचारी ही है न? आत्मा तो सदा ब्रह्मचारी ही है न! ।
१६. फिसलनेवालों को, उठाकर दौड़ाते हैं विषय के गुनाह का फल क्या है, पहले वह समझ लेना चाहिए। वह समझ में आए, तभी वह गुनाह करने से रुकेंगे। ज्ञानी को जो पकड़े रखेगा, वह छूट जाएगा एक दिन।
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