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जहाँ तक विषय का सवाल है, इन्द्रियों पर इफेक्ट और मन दोनों अलग भी रह सकते हैं। स्थूल विषय भोगने से पहले, मन विषय भोगे या नहीं भी भोगे। चित्त से भोगना मतलब तरंगों (शेखचिल्ली जैसी कल्पनाएँ) से, फिल्म से भोगना। जब चित्त से या मन से भोगे, उसी को भोगना कहते हैं। अगर मन से मंथन में चला जाए तो पूरा सार मर जाता है। वह मरा हुआ पड़ा रहेगा और फिर वह डिस्चार्ज होगा ही। विषय के विचार में तन्मयाकार हो जाना, वही मंथन है। तन्मयाकार नहीं हुआ तो पार उतर जाएगा, ब्रह्मचर्य के साइन्स में! मंथन होने लगे कि तुरंत ही प्रतिक्रमण कर लेना। प्रतिक्रमण का टाइमिंग संभालना आवश्यक है। यदि कुछ ज़्यादा टाइम बीत जाए तो फिर मंथन हो ही जाता है। इसलिए विचार आते ही, ऑन द मोमन्ट प्रतिक्रमण हो जाना चाहिए। आगे-आगे विचार और पीछे-पीछे प्रतिक्रमण हो ही जाना चाहिए। जहर पीया लेकिन गले से नीचे उतरने से पहले ही यदि उल्टी कर दे तभी बच पाएगा! उसी प्रकार यह प्रतिक्रमण भी तुरंत ही हो जाना चाहिए। ज़रा सा भी विचारों में फँसा तो फिर मंथन शुरू हो जाता है। फिर स्खलन हुए बिना नहीं रहेगा। आधे घंटे तक उल्टा चला हो लेकिन अगर जागृत हो जाए तो प्रतिक्रमण से सब धो सकता है! ऐसा ग़ज़ब का है यह अक्रम विज्ञान !
१४. ब्रह्मचर्य प्राप्त करवाए ब्रह्मांड का आनंद
ब्रह्मचर्य से अपार आनंद मिलता है। अन्य किसी चीज़ में कभी भी न चखा हो, ऐसा आनंद उत्पन्न हो जाता है ! महा-महा पुण्यात्मा को प्राप्त होता है ब्रह्मचर्य। खरा ब्रह्मचर्य ज्ञानी की आज्ञानुसार होना चाहिए।
और गलती हो जाए तो उनसे माफी माँग लेना। जो संपूर्ण ब्रह्मचर्य में आ जाए, उसका अनंत जन्मों का सभी नुकसान पूरा हो गया माना जाएगा। निर्भय हो जाता है और ब्रह्मचर्य का तेज तो सामनेवाली दीवार पर भी पड़ता है! जिसे शुद्धात्मा का वैभव चाहिए, उसके लिए ब्रह्मचर्य पालन आवश्यक है। ज्ञान में बहुत मदद करता है वह! ब्रह्मचर्य, वह महाव्रत है। उससे आत्मा का स्पेशल अनुभव होता है!
ब्रह्मचर्य व्रत लेने के बाद उसे तोड़ने से भयंकर दोष लगता है। मारा ही जाता है, वह। व्रत देनेवाले निमित्त को भी दोष लगता है।
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