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५६ प्राकृत साहित्य का इतिहास साथ आर्द्रक मुनि का संवाद है । वणिकों (?वनीपकों) के संबंध में गोशाल के मुख से कहलाया गया है
वित्तेसिणो मेहुणसंपगाढा ते भोयणट्ठा वणिया वयंति । वयं तु कामेसु अज्झोववन्ना अणारिया पेमरसेसु गिद्धा ।।
-वणिक (वनीपक) धन के अन्वेषी, मैथुन में अत्यन्त आसक्त और भोजन-प्राप्ति के लिये इधर-उधर चक्कर मारा करते हैं। हम तो उन्हें कामासक्त, प्रेमरस के प्रति लालायित और अनार्य कहते हैं।
सातवें अध्ययन का नाम नालन्दीय है। इस अध्ययन में वर्णित घटना नालन्दा में घटित हुई थी, इसलिये इसका नाम नालन्दीय पड़ा। गौतम गणधर नालन्दा में लेप गृहपति के हस्तियाम नामक वनखंड में ठहरे हुए थे। वहाँ पार्श्वनाथ के शिष्य उदकपेढालपुत्र के साथ उनका वाद-विवाद हुआ और अन्त में पेढालपुत्र ने चातुर्याम धर्म त्याग कर पंच महाव्रत स्वीकार किये।
ठाणांग ( स्थानांग) स्थानांग सूत्र में अन्य आगमों की भाँति उपदेशों का संकलन नहीं, बल्कि यहाँ स्थान अर्थात् संख्या के क्रम से बौद्धों के अंगुत्तरनिकाय की भाँति लोक में प्रचलित एक से दम तक वस्तुएँ गिनाई गई हैं। इस सूत्र में दस अध्ययनों में ७८३ सूत्र हैं। इसके टीकाकार हैं अभयदेवसूरि ( ईसवी सन् १०६३),
कार ने बौद्ध साधुओं को-हस्तितापस कहा है। ललितविस्तर (पृ० २४८) में हस्तिव्रत तपस्वियों का उल्लेख है।
१. दीघनिकाय (३, पृष्ठ ४८ इत्यादि) में चातुर्याम धर्म का उल्लेख है। मज्झिमनिकाय के चूलसकुलुदायिसुत्त में निगण्ठनाटपुत्त और उनके चातुर्याम संवर का उल्लेख मिलता है।
२. दूसरी आवृत्ति, सन् १९३७ में अहमदाबाद से प्रकाशित ।