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तीआणागय-संपइय-अतीत, । बासीयाइं-बयासी ( ८२ )।
अनागत और साम्प्रतिक, भूत, तिअलोए-तीनों लोक ( स्वर्ग, भविष्य और वर्तमानकालमें | मर्त्य, पाताल ) में। प्रादुर्भूत ।
चेइए-जिन प्रासादोंको। वंदउं-मैं वन्दना करता हूँ।
वंदे-मैं वन्दन करता हूँ। जिण-जिनोंको।
पन्नरस-कोडि-सयाई-पन्द्रहसौ सव्वे वि-सभीको।
करो (१५००००००० )।
कोडी बायाल-बयालीस करोड़ । सत्ताणवइ-सहस्सा-सत्ताणवे
( ४२०००००००) हजार ( ९७००० )।
लक्ख अडवना-अट्ठावन लाख लक्खा छप्पन्न-छप्पन लाख
(५८००००० )। ( ५६०००००)।
छत्तीस-सहस-छत्तीस हजार अट्ठकोडीओ-आठ करोड़
(३६०००)। (८००००००० )। असीइं-अस्सी ( ८० )। बत्तीस-सय-बत्तीस सौ सासय-बिंबाई-शाश्वत बिम्बोंको। ( ३२०० )।
पणमामि-मैं प्रणाम करता हूँ। अर्थ-संकलना
जगत्में चिन्तामणि-रत्नके समान ! जगत्के स्वामी ! जगत्के गुरु ! जगत्का रक्षण करनेवाले ! जगत्के निष्कारण बन्धु ! जगत्के उत्तम सार्थवाह ! जगत्के सर्व भावोंको जानने में तथा प्रकाशित करने में निपुण ! अष्टापद पर्वतपर ( भरत चक्रवर्तीद्वारा) जिनकी प्रतिमाएं स्थापित की गयी हैं ऐसे ! आठों कर्मोका नाश करनेवाले ! तथा अबाधित ( धारा--प्रवाहसे ) उपदेश देनेवाले! ऋषभादि चौबीसों तीर्थङ्करों ! आपकी जय हो ॥१॥
कर्मभूमियोंमें--पाँच भरत, पाँच ऐरावत और पाँच महाविदेहमें
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