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________________ ४५ तीआणागय-संपइय-अतीत, । बासीयाइं-बयासी ( ८२ )। अनागत और साम्प्रतिक, भूत, तिअलोए-तीनों लोक ( स्वर्ग, भविष्य और वर्तमानकालमें | मर्त्य, पाताल ) में। प्रादुर्भूत । चेइए-जिन प्रासादोंको। वंदउं-मैं वन्दना करता हूँ। वंदे-मैं वन्दन करता हूँ। जिण-जिनोंको। पन्नरस-कोडि-सयाई-पन्द्रहसौ सव्वे वि-सभीको। करो (१५००००००० )। कोडी बायाल-बयालीस करोड़ । सत्ताणवइ-सहस्सा-सत्ताणवे ( ४२०००००००) हजार ( ९७००० )। लक्ख अडवना-अट्ठावन लाख लक्खा छप्पन्न-छप्पन लाख (५८००००० )। ( ५६०००००)। छत्तीस-सहस-छत्तीस हजार अट्ठकोडीओ-आठ करोड़ (३६०००)। (८००००००० )। असीइं-अस्सी ( ८० )। बत्तीस-सय-बत्तीस सौ सासय-बिंबाई-शाश्वत बिम्बोंको। ( ३२०० )। पणमामि-मैं प्रणाम करता हूँ। अर्थ-संकलना जगत्में चिन्तामणि-रत्नके समान ! जगत्के स्वामी ! जगत्के गुरु ! जगत्का रक्षण करनेवाले ! जगत्के निष्कारण बन्धु ! जगत्के उत्तम सार्थवाह ! जगत्के सर्व भावोंको जानने में तथा प्रकाशित करने में निपुण ! अष्टापद पर्वतपर ( भरत चक्रवर्तीद्वारा) जिनकी प्रतिमाएं स्थापित की गयी हैं ऐसे ! आठों कर्मोका नाश करनेवाले ! तथा अबाधित ( धारा--प्रवाहसे ) उपदेश देनेवाले! ऋषभादि चौबीसों तीर्थङ्करों ! आपकी जय हो ॥१॥ कर्मभूमियोंमें--पाँच भरत, पाँच ऐरावत और पाँच महाविदेहमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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