________________ नैषधीयचरिते बैठा / भाव यह निकला कि नल का प्रतिबिम्ब देखकर सब मोहित हो गई और उनमें नलविषयक काम भड़क उठा। अलंकार यहाँ उत्प्रेक्षा है जिसका वाचक शब्द नूनम् है। धैर्य नामक संचारी भाव के उपशमन से भावोपशमन अलंकार भी है / शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है। 'रती' 'रति' 'रतिः' में भी एक से अधिक बार वर्णों की आवृत्ति के कारण छेक न होकर वृत्त्यनुप्रास ही है। तस्माददृश्यादपि नातिबिभ्युस्तच्छायरूपाहितमोहलोलाः / मन्यन्त एवादृतमन्मथाज्ञाः प्राणानपि स्वान्सुदृशस्तृणानि // 32 / / अन्वयः--तच्छाय लोलाः सुदृशः अदृश्यात् अपि न अतिबिभ्युः, आहतमन्मथाज्ञाः ( ताः ) स्वान् प्राणान् अपि तणानि एव मन्यन्ते / / टोका-तस्य नलस्य छायाया: हारादी प्रतिबिम्बस्य रूपेण सौन्दर्येण (उभयत्र 10 तत्पु० ) आहितः जनितः (त० तत्पु० ) यो मोहः चित्तभ्रमः: (कर्मधा० ) तेन लोला: चञ्चलाः सु = शोभने दृशो नयने यासां तथाभूता (प्रादि ब० वी० ) सुन्दर्य इत्यर्थः अदृश्यात द्रष्टुमशक्यात् अन्तर्हितादिति यावत् अपि नलात् न अतिशयेन विभ्युः भयं प्राप्ताः यतः आदतः संमानितः मन्मथस्य कामस्य आज्ञा आदेशः (10 तत्पु० ) याभिः तथाभूताः (ब० वी० ) ता: कामवशीभूता इत्यर्थः स्वान् निजान प्राणान् जीवितम् अपि तुणानि एव मन्यन्ते तृणाय मन्यते, तृणवत् तुच्छान् गणयन्ति स्मेति यावत् / यदा प्राणेभ्योऽपि तासां नासीत् भयम्, तर्हि कामवशीभूततया अदृश्यादपि नलात् ताः कुतो बिभीयुरिति भावः // 32 // व्याकरण--अतिविभ्युः अति + भी + लिट् / तच्छायम् - इसके लिए पिछला श्लोक देखिए। मन्मथः इसके लिए पीछे श्लोक 16 देखिए / आहित आ + Vधा + क्त ( कर्मणि) धा को हि / अनुवाद-उन ( नल ) के प्रतिबिम्ब के सौन्दर्य से उत्पन्न मोह के कारण बेचैन बनी सुन्दरियाँ अदृश्य होते हुए भी उनसे बहुत नहीं डरी, ( क्योंकि ) काम की आज्ञा मानती हुई वे प्राणों तक को भी तणवत् ( तुच्छ ) समझने लग गई थीं / / 32 // टिप्पणी-कामाधीन हुई सुन्दरियों को जब प्राणों तक का भी मोह न रहा, तो उन्हें डर अब किससे होनी थी। यहाँ भयनामक संचारी भाव के