Book Title: Kalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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श्रीकल्प
कल्प
मञ्जरी टीका
॥४३॥
rang पर्यायज्येष्ठानुसारेण कृतिकर्मचन्दनं कर्तुं कल्पते । उक्तं चान्यत्रापि
“समणेहि य समणीहि य अहारिहं होइ कायव्वं" छाया-श्रमणैश्च श्रमणीभिश्च यथाई भवति कर्तव्यम्-इति ।
यथा निग्रन्थाः पर्यायज्येष्ठान निर्ग्रन्थान् प्रति कृतिकर्म कुर्वन्ति, किं तथैव पर्यायज्येष्ठा निर्ग्रन्थीः प्रत्यपि कुर्वन्ति ? इति सन्देहमपाकर्तुमाह-'नो कप्पइ निग्गंथाणं' इत्यादि । निर्ग्रन्थानां न कल्पते=न युज्यते निग्रन्थीनां कृतिकर्म कर्तु मिति । ननु यथा निग्रन्थानां कृते निग्रन्थीः प्रति कृतिकर्मकरणमनुचितम्, किं तथैव निर्ग्रन्थीनां कृते निग्रन्थान् प्रति कृतिकर्मकरणमनुचितम् ? इति सन्देहमपाकर्तुमाह-कप्पइ निग्गंथीण' इत्यादि। निर्ग्रन्थीनां कृते तु निग्रन्थान् प्रति कृतिकर्मकरणमुचितमेवेत्यर्थः । उक्तं चात्रसमय की दीक्षा वाले को वन्दना करे। कम समय की दीक्षिता साध्वी अधिक समय की दीक्षावाली साध्वी को वन्दना करे । अन्यत्र कहा है--"समणेहि य समगीहि य, अहारिहं होइ कायव्वं," "श्रमणों और श्रमणियों को यथायोग्य वन्दनाःकरनी चाहिए"।
जैसे श्रमण पर्यायज्येष्ठ श्रमगों को वन्दना करते हैं. उसी प्रकार क्या साध्वियों को भी वन्दना करें? इस सन्देह का निवारण करने के लिए शास्त्रकार कहते हैं-"नो कप्पा निग्गंथाणं" इत्यादि । साधु साध्वियों को वन्दना न करें।
शंका-तब तो जैसे साधुओं को साध्वी की वन्दना करना उचित नहीं है, उसी प्रकार साध्वियों को साधु की वन्दना करना भी उचित नहीं है ? इस शंका को दूर करने के लिए कहते हैं--'कप्पा निग्गंधीणं' इत्यादि । साधु की वन्दना करना साध्वियों के लिए उचित है। कहा भी हैसमयनी दीक्षामा सापाने पहन रे । छ
“समणेहि य समणीहि य, अहारिहं होइ कायव्वं " શ્રમણ શ્રમણીઓ યથાયોગ્ય વંદન કરે
શંકા--જે એમ છે કે જેમ સાધુઓએ સાધ્વીને વંદના કરવી ઉચિત નથી તેમ સાધ્વીઓએ પણ સાધુને वना न वीन? म शान २१। माटे छ--'कप्पइ निग्गाणं'त्यादि।
सावी। साधुने बहन ४३, ४ ५७ --
॥४३॥
શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧