Book Title: Kalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 521
________________ श्रीकल्पसूत्रे ॥५०५॥ PLEASE TATA TERA TENDE खीणनेरइयाउयत्त १९ - खीणतिरियाउयत्त २० - खीणमणुस्साउयत्त २१ - खीण देवाउयत्त २२ - खीणमुहनामत्त २३ - खीणअमुहनामत्त २४ - खीणउच्चगोयत्त २५ - खीणनीयगोयत्त२६ - खीणदाणंतरायत्त २७- खीणलाहंतरायत्त २८- खीणभोगंतरा - यत्त २९ - खीणउवभोगंतरायत्त३० - वीणवीरियंतरायत्त ३१ - प्पभिइनाणा विहगुणरयणरासी सासओ सिद्धो भविस ॥सू०४३॥ १३ – रत्नराशिस्वप्नफलम् छाया - रत्नराशिदर्शनेन असौ प्राणातिपातविरमणादिसप्तविंशत्यनगारगुण-द्वादशविधतपो-द्वयशीत्यधिकसप्तदशशत-भेदप्रभेदसप्तदशसंयमा-ष्टादशशीलाङ्गसहस्राद्यनेकगुणरत्नराशिरूपो भविष्यति । अथ च - पूर्वभवोपार्जिततीर्थकर नामकर्मादिलक्षणपरम पुण्यप्राग्भारेण तीर्थकरः क्षीणाभिनिवोधिकज्ञानाऽऽवरणत्व १ - क्षीणश्रुतज्ञानावरणत्व २ - क्षीणावधिज्ञानावरणत्व३ - क्षीणमनः पर्यवज्ञानावरणत्व४- क्षीण केवलज्ञानावरणत्व५ १३ - रत्नराशि के स्वप्न का फल मूल का अर्थ- 'रणरा सिदंसणेणं' इत्यादि । रत्न - राशि देखने से वह बालक प्राणातिपातविरमण आदि सत्ताईस अनगार के गुणों, बारह प्रकार के तपों, सत्तरह सौ वयासी 'तणावा' भेद-प्रभेद सहित सत्रह प्रकार के संयम और अठारह हजार शीलांगों आदि अनेक गुणरूपी रत्नों की राशि होगा । इसके अतिरिक्त - पूर्वभव में उपार्जित तीर्थकर - नाम-कर्म आदि पुण्य के समूह से वह तीर्थकर होगा । तथा १ - श्रभिनिबोधिक ज्ञानावरण का क्षय, २- श्रुतज्ञानावरण का क्षय, ३ - अवधिज्ञानावरण का ४- मन:पर्ययज्ञानावरण का क्षय, ५- केवलज्ञानावरण का क्षय, ६ - चक्षुर्दर्शनावरण का क्षय, क्षय, ૧૩-રત્નરાશિના સ્વપ્નનું ફળ भूणना अर्थ - " रयणरासिदंसणेणं "त्याहि रत्न राशि लेवाथी ते जाण आधुतिपातविरभशु आि सत्याचीश भाशुभारना गुगु, जार प्रअरनां तयो, सत्तरशी ज्याशी " तणावा" लेह - प्रलेहे। सहित सत्तर प्रारना સયમ અને અઢાર હજાર શીલાંગા આદિ અનેક ગુણરૂપી રત્નાનેા રાશિ થશે. તે ઉપરાંત પૂ॰ભવમાં ઉપાર્જિત તીર્થંકરનામકમ આદિ પુણ્યના સમૂહથી તે તીર્થંકર થશે, તથા (૧) આાભિનિમેાધિકજ્ઞાનાવરણને ક્ષય, (૨) શ્રુતજ્ઞાનાવરણને ક્ષય, (૩) અવધિજ્ઞાનાવરણના ક્ષય (૪) મનઃ૫ વજ્ઞાનાવરણના ક્ષય (૫) કેવળજ્ઞાનાવરણના ક્ષય શ્રી કલ્પ સૂત્ર : ૦૧ कल्प मञ्जरी टीका रत्नराशि स्वमफलम्. ॥५०५॥

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