Book Title: Kalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 520
________________ श्रीकल्प सूत्रे ॥५०४ ॥ देवदेवी विंदवं दिज्ज माणचरणो भविस्स ||०४२ || १२ - देवविमानस्वप्नफलम् छाया - देव विमानदर्शनेन असौ समवसरणरूपद्रव्यऋद्धिसम्पन्नः जगदालम्बनभूतो देवदेवीवृन्दवन्यमानचरणो भविष्यति ॥ ४२ ॥ टीका--' देवविमाणदंसणेणं' इत्यादि । व्याख्या स्पष्टा ।। सू०४२ || १३ - रयणरासिसुमिणफल मूलम् — रयणरासिदंसणेणं अमू पाणाइवायविरमणाइसत्तावीस अणगारगुण- बारसविहतव - बासी अहियसत्तदससयभेयप्पभेय - सत्तदससंजम अट्ठारस सीलंगसहस्साइ- अणेगगुणरयणरासिरूवो भविस्सर । अह य - पुव्वभवोवज्जियतित्थयरनामकम्माइलक्खणपरमपुण्णपब्भारेण तित्थयरो वीणाभिावोहिय-णाणावरणत १ - खीणसुयणाणावरणत्त२ - खीणओहीणाणावरणत्त३ - खीणमणपज्जवणाणावरणत्त४ - खीणकेवलणाणावरणत्त५ - खीणचक्खुदंसणावरणत्त ६ - खीणअचक्खुदंसणावरणत्त७ - खीण ओहीदंसणावरणत्तट - खीणकेवलदंसणावरणत्त ९ - खीणनिदत्त १० - खीणनिदानिद्दत्त ११ - खीणपयलत्त १२ - खीणपयलापयलत्त १३ - खीणथीणद्धित्त १४खीणसाया वे यणिज्जत्त १५ - खीणअसा यावे यणिज्जत्त १६ - खीणदंसणमोहणिज्जत १७ - खीणचरितमोहणिज्जत १८ केवलज्ञानादिभावऋद्धिसम्पन्नो १२ - देवविमान के स्वप्न का फल मूल और टीका का अर्थ - 'देवविमाणदंसणेणं' इत्यादि । देवविमान का स्वप्न देखने से वह बालकसमवसरण तथा अष्टमहाप्रातिहार्य । रूप द्रव्यऋद्धि से सम्पन्न होगा । केवलज्ञान आदित भाव - ऋद्धि से सम्पन्न होगा जगत् का आश्रयभूत होगा और देवों तथा देवियों के समूह से बन्दित होगा || सू० ४२ ॥ ૧૨-દેવ-વિમાનના સ્વપ્નનુ ફળ वाथी ते जाण भूजनो ने टीना अर्थ - " देवविमाणदसणेणं " इत्यादि हेव-विभाननुं स्वप्न સમવસરણુ તથા અષ્ટ-મહાપ્રાતિહા રૂપ દ્રવ્યઋદ્ધિવાળા થશે. કેવળજ્ઞાન આદિ ભાવઋદ્ધિથી સંપન્ન હશે. જગતના આધારરૂપ થશે અને દેવા તથા દેવીઓના સમૂહથી વન્દ્રિત થશે. (સૂ॰ ૪૨) શ્રી કલ્પ સૂત્ર : ૦૧ कल्प मञ्जरी टीका देवविमानस्वमफलम्. ॥ ५०४ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596