Book Title: Kalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 528
________________ श्रीकल्पसुत्रे कल्पमञ्जरी टीका ॥५१२॥ टीका-निद्धमसिहिदंसणेणं' इत्यादि । निर्धूमशिखिदर्शनेन धूमरहिताग्निस्वमदशनेन असौ बालः शिखीव अग्निरिव पूतः पवित्रः पावकः अन्येषां पवित्रकारकश्च भविष्यति । तथा-ध्यानानलेन ध्यानरूपेणाग्निना अनादिकालीनात्ममलम्-अनादिकालीनम् अनादिकालादागतं यदात्ममलं-ज्ञानावरणीयादिकं तत् शोधयिष्यति-अपनेष्यति। तथा-शुक्लध्यान-विघटित-घनघाति-कर्ममल-पटलो-ल्लसित-विमलकेवलज्ञानालोकेन-शुक्लध्यानेन विघटितम् = अपसारितं यद् घनघातिकर्ममलपटलंघनघातिकर्ममलचयस्तेन उल्लसितम्-उद्गतं यद विमलकेवलज्ञानं तस्य आलोकेन-प्रकाशेन यथावस्थिताशेषभूतभवद्भावि-भाव-स्वभावावभासकः-यथावस्थिताः याथातथ्येन स्थिता ये भूतभवद्भाविना त्रैकालिकाः भावाः पदार्थाः, तेषां यः स्वभावः तस्य अवभासक: प्रकाशको मनुष्य तथा तिर्यच-रूपी सघन मेघों द्वारा बरसाई जानेवाली अनेक प्रकार के उपसर्ग-रूपी जल की धाराओं से भी उसके ध्यान की शिखा बुझ नहीं सकेगी। वह वायु-विहीन स्थान में स्थित अग्निशिखा के समान ऊर्ध्वगामी होगा ॥सू०४४॥ टीका का अर्थ-निद्धमसिहिदसणेणं' इत्यादि । निर्धूम अग्नि का स्वप्न देखने से वह बालक अग्नि के समान स्वयं पवित्र करनेवाला होगा। ध्यानरूपी अग्नि से, अनादि से चले आये ज्ञानावरणीय आदि आत्मिक मल को दूर करेगा। शुक्लध्यान के प्रभाव से घातिक कर्म-मल के समूह को नष्ट करने से उत्पन्न हुए निर्मल केवल ज्ञान के प्रकाश से यथार्थरूप से समस्त भूत, वर्तमान तथा भावी भावों-पदार्थों के स्वभाव को जाननेवाला होगा। तथा अनेक प्रकार के कठिन, कठिनतर और कठिनतम अभिग्रहों (नियम-विशेषों) का દેવ–મનુષ્ય-તિય"ચ દ્વારા, સધન મેઘની માફક વરસાવવામાં આવતી ઉપસર્ગરૂપી ઝડીએથી પણ, આ બાલકની ધ્યાનરૂપી અગ્નિ બુઝાશે નહિં. જેમ વાયુ વિનાના સ્થળમાં, અગ્નિ શિખા ઉર્ધ્વગામીજ હોય છે. તેમ આ બાલક પણ ઉર્ધ્વગામી બનશે. (સૂ૦૪૪) जानी मथ-निद्धमसिहिदसणेण' त्यालिनिभ(धुभासहित) मनुस्मन्नेवाचा ते माग पोते मनिना જે પવિત્ર હશે અને બીજાને પવિત્ર કરનારે હશે. ધ્યાનરૂપી અગ્નિ વડે અનાદિ કાળથી ચાલ્યા આવતા જ્ઞાના વરણીય આદિ આમિક મેલને દૂર કરશે. શુકલ ધ્યાનના પ્રભાવથી ઘાતકકમ-મળના સમૂહને નાશ કરવાથી ઉત્પન્ન થયેલા નિર્મળ કેવળજ્ઞાનના પ્રકાશથી યથાર્થરૂપથી સમસ્ત ભૂત, વર્તમાન તથા ભવિષ્યના ભાવો-પદાર્થોના સ્વભાવને જાણનારે થશે. તથા અનેક પ્રકારના કઠિન, કઠિનતર અને કઠિનતમ અભિગ્રહો (ખાસ નિયમો)નું તથા વિવિધ निर्धूमाग्निस्वमफलम्. ॥५१२॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596