Book Title: Kalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 530
________________ श्रीकल्पसूत्रे ॥५१४॥ निश्शेषितः = सर्वया विनाशितः कर्ममलकलङ्की येन स तथा - भवभवान्तराऽऽत्मसंलग्नकर्मपरम्परायाः सर्वयोछेद इत्यर्थः, अत एव - अवाप्तशुद्धनिजस्वभावः - अवाप्तः सम्प्राप्तः शुद्धः = वास्तविको निजस्वभावो येन स तथाआत्मस्वभावपरिनिष्ठित इत्यर्थः, तथा-ऊर्ध्वगतिपरिणामः - ऊर्ध्वो गतिपरिणामो यस्य स तथा - सिद्धिगतिपरिणामयुक्त इत्यर्थः, तथा देवमनुष्य-तिर्यग्-घनघनाघन कृतनानाविधोपसर्ग- वारिधारा-रयाऽप्रतिहतध्यानशिखः- तत्रदेवमनुष्यतिर्यञ्च एव घनो= निविडो घनाघनो = मेघः, तत्कृता या नानाविधाः = अनेकप्रकारा उपसर्गवारिधाराः=उपसर्गरूपजलधाराः, तासां यद् रयः=वेगस्तेनापि श्रप्रतिहता = अनुपशान्ता ध्यानशिखा ध्यानरूपा ज्वाला यस्य स तथाभूतः सन् निर्वातस्थानस्थिताग्निशिखेव - निर्वातस्थाने = वातसंचारवर्जिते स्थले योऽग्निस्तस्य या शिखा = ज्वाला सेव ऊर्ध्वगामी= ऊर्ध्वगमनशीलो भविष्यतीति ॥ सू०४४ ॥ ॥ इति तृतीय वाचना ॥ मूलम् - तए णं सा तिसला खत्तियाणी तुट्टा करयलपरिग्गहियं सिरसाऽऽवत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं चित्तमाणंदिया हरिसवसविसप्पमाणहियया वयासी - एवमेयं सामी ! तहमेयंसामी ! कर्मों का क्षय हो जाता है। इस ध्यान के द्वारा वह बालक भी आत्मा के शुद्ध स्वरूप को प्राप्त कर लेगा, अर्थात् आत्मा के असली स्वरूप में स्थित हो जायगा । तत्पश्चात् वह सिद्धिगति परिणाम वाला होगा । देव, मनुष्य और तिर्यच रूपी सघन मेघों के द्वारा की गई अनेक प्रकार के उपसर्गरूपी जलधाराओं के वेग से भी उसके ध्यान की लौ शान्त नहीं होगी। जैसे वायु के संचार से रहित स्थान में स्थापित की हुई अग्नि शिखा ऊपर की और बढ़ती है, उसी प्रकार वह भी ऊर्ध्वगमन शील होगा अर्थात् सिद्ध गतिगामी होगा || सू०४४ ॥ ॥ इति तृतिय वाचना ॥ કર્માના ક્ષય થઈ જાય છે. આ ધ્યાન વડે તે ખાળક પણુ આત્માના શુદ્ધ સ્વરૂપને પ્રાપ્ત કરશે. એટલે કે આત્માના અસલી સ્વરૂપમાં આવી જશે. ત્યારબાદ તે સિદ્ધિગતિ પરિણામવાળા થશે. દેવ, મનુષ્ય અને તિ"ચ રૂપી સઘન મેઘાના વડે કરાયેલ અનેક પ્રકારના ઉપસર્ગો રૂપી જળ ધારાઓના વેગથી પણ તેના ધ્યાનની લગની શાન્ત નહીં થાય. જેમ વાયુના સંચાર વિનાની જગ્યાએ રાખેલી અગ્નિશિખા ઉપરની બાજુ વધે છે, એજ રીતે તે પણ ઉર્ધ્વગમનશીલ, થશે એટલે કે સિદ્ધગતિગામી થશે. (૪૪) ઇતિ તૃતિય વાચના શ્રી કલ્પ સૂત્ર ઃ ૦૧ कल्प मञ्जरी टीका निर्धूमाग्नि स्वमफलम्, ॥५१४ ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596